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वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सभी की मुहब्बतों के हवाले ....

वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे
पुकारता भी रहे और नज़र न आए मुझे

मैं डर रहा हूँ कहीं वो न हार जाए मुझे
मेरी अना के मुक़ाबिल नज़र जो आए मुझे

मुझे समझने का दावा अगर है सच्चा तो 
मैं उसको चाहता हूँ, अब 'वही' बताए मुझे

मनाने रूठने के खेल में तो तय था यही
मैं रूठ जाऊं, वो हर हाल में मनाए मुझे

वो मुफ्त में मुझे हासिल नहीं है, तो वो भी
मुहब्बतों के हवाले से ही कमाए मुझे

मैं सुब्हो शाम पढ़े हूँ उसे फ़साने सा
वो हर वरक पे मनाज़िर नए दिखाए मुझे

(मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फैलुन)
१२१२ ११२२ १२१२ २२

- वीनस केसरी

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Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:50pm

सही कह रहे हैं अरुण भाई,
अब मुझे भी यकीन होता जा रहा है कि यह एक ऐसी ग़ज़ल है जिसे मैंने अपने लिए कही थी तो साझा नहीं करना था ...
खुले दिल से इसी तरह अपनी राय से नवाजते रहें  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 12:59pm
आदरणीय..वीनस जी, "आभार आपका...हार्दिक शुभकामनायें...."
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 5, 2013 at 12:26pm

आदरणीय वीनस भाई सादर सच कहूँ तो मज़ा नहीं आया ऐसी ग़ज़ल तो मैं लिखता हूँ जल्दबाजी और अधूरापन मेरी ग़ज़लों में अक्सर नज़र आता है, भाई जी यह केवल इसलिए क्यूंकि आपने ख्वाब ही ऐसा दिखा दिया है.

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 11:21am

संदीप भाई,
हमेशा की तरह आपकी यह प्रतिक्रिया भी सर माथे 

अब तो मुझे भी इस ग़ज़ल के कई कई अशआर बहरो वज्न में हुए प्रलाप से अधिक कुछ नहीं लग रहे, जिसका अर्थ स्पष्ट हो पाना सामान्यतः दुष्कर है

हाँ इसे वो लोग अवश्य समझ रहे होंगे जिनके लिए यह है या जो मुझे ग़ज़ल और ग़ज़लगोई से अधिक जानते हैं ....

बहरहाल....
आपने अपने दिल की बात साफ़ शब्दों में कही, यह देख कर बहुत खुशी हुई,
क्योकि इस मुआमले में अच्छे अच्छे लोग मात खा जाते हैं ...हा हा हा 

भाई, अभी इश्क के इम्तिहाँ और भी हैं ..... 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 10:44am

आदरणीय वीनस सर जी 

यूँ तो ग़ज़ल का हर अशआर शानदार है उसके लिए आप ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए ..........लेकिन छोटा मुँह बड़ी बात 

इस बार वो मजा नहीं आया जो मैं आपकी ग़ज़लों को जीता आया हूँ ,,,,,कुछ सपाट बयानी सी लगी इस ग़ज़ल में......और आपका बिम्ब  गायब रहा 

संभवतः आपने कम वक़्त दिया है इस ग़ज़ल को 

सादर धमाकेदार वापिसी की चाहत लिए इंतज़ार मैं आपका .................संदीप पटेल 


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Comment by Saurabh Pandey on June 5, 2013 at 9:00am

कुछ प्रस्तुतियाँ शाब्दिक होती हैं, कुछ प्रस्तुतियाँ भावुक होती हैं. लेकिन संयत प्रस्तुतियाँ शाब्दिक और भावुक संप्रेषण का संतुलन होती हैं. ग़ज़लों में, जैसा मैंने जाना है, एक और विन्दु होता है, आत्माभिव्यक्ति का, जो अन्य रचनाओं में ऐच्छिक होता है  -हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है. किन्तु, ग़ज़लों में यह विन्दु स्वयंप्रसूत अजस्र अंतर्धारा की तरह होता है, जिसकी गति संवेदनासमर्थित आभिव्यक्ति के सतत गठते चले जाने से उत्तरोत्तर बढ़ती चली जाती है. तभी कहते हैं कि ग़ज़ल अनुभव और अभ्यास का सुन्दर सम्मिलन है.

वीनसभाई, आपकी यह ग़ज़ल जिन घूर्ण्य पलों का उत्तर-प्रभाव हैं, उनके अनुभव आपकी लेखन की दिशा और दशा दोनों को सापेक्ष मैच्योरिटी की ओर भरसक मुड़ जाने के पहले के मुख्य पड़ाव हैं. यहाँ से आपसे ज़हीन किन्तु ’जी गयी’ ग़ज़लों की अपेक्षा होगी, जो होती तो सभी से है, लेकिन निभा कम ही शायर पाते हैं, पूरी उम्र खप जाती है.

शुभकामनाएँ व बधाइयाँ

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:15am

जीतेन्दर पस्तारिया जी आपकी नवाजिश है

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:14am

नीरज मिश्रा जी दाद देने के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:13am

संदीप वाहिद भाई आपकी ज़र्रा नवाजिश है
इधर  भी आजकल मुजारे पर ही जोर आजमाईश जारी है, इस पर मेरे पास कुछ ही ग़ज़लें हैं वो भी मुझे पसंद नहीं हैं तो सोचा कुछ और कहा जाए

वैसे जल्दीबाजी में एक मिसरा बेबहर हो गया था और आपने कोट करते हुए भी ध्यान नहीं दिया ... जब मुझे ध्यान आया तो बड़ी घबराहट हुई कि ये बेबहर शेर कैसे शेयर हो गया मगर देखा तो किसी ने नहीं पकड़ा था झट से सही कर लिया .. हा हा हा

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:10am

डॉ आशुतोष वाजपेयी जी हार्दिक आभार

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