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भारतीयता रही न ध्यान है

छंद विधान - रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु

राष्ट्र स्वाभिमान की प्रतीक है ध्वजा त्रिवर्ण किन्तु अग्नि वर्ण केतु का रहा न मान है
द्रोह की प्रवृत्ति द्रोह को बता रही महान और दिव्य भारतीयता रही न ध्यान है
अन्धकार का प्रसार हो रहा अपार बन्धु मानवीय मूल्य का न लेश मात्र ज्ञान है
राष्ट्रवाद का झुका हुआ निरीह शीश देख राष्ट्रद्रोह का यहाँ तना हुआ वितान है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Views: 695

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 31, 2013 at 10:09pm

आ0 आशुतोष भाई जी,  देश प्रेम से परिपूर्ण और राष्ट्र विरोधियों पर करारा व्यंग्य।  अतिसुन्दर छन्द।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2013 at 7:02pm

राष्ट्र द्रोह के प्रति आपकी काव्यात्मक लेखनी खूब चलती है आदरणीय श्री आशुतोष वाजपेयी जी 

निसंदेह मानवीय मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा, जिस और लेल्श मात्र भी किसी का ध्यान नहीं है 

जन जन को जाग्ररुक करने का कवी का दायित्व बखूबी निर्वाह करने केलिए साधुवाद | काव्य के लिए बधाई 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 31, 2013 at 5:30pm

बहुत सुन्दर  भाव ... 

Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 4:54pm

ज्योतिषाचार्य जी , करजोड़ प्रणाम, आपके गुरू गंभीर पद्य पढ़कर मन गद्गद हो गया. आपके आशिर्वाद से आशा है तिमिर में लिपटे मानव को दिव्यता प्राप्त हो .

विनीता/  कुंती .

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 31, 2013 at 4:43pm

बहुत बहुत आभार राम शिरोमणि जी, संदीप कुमार जी.....आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है 

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 1:02pm

आदरणीय आशुतोष सर जी बहुत ही सुंदर///प्रणाम सहित हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 11:26am

आदरणीय आशुतोष सर जी बहुत ही सुंदर छन्द रचा है आपने साधुवाद इस अनुपान रचना हेतु सादर 

कृपया ध्यान दे...

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