For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा

एक वासंती सुबह
‘’ मैं कितनी खुशनसीब हूँ ,
मेरे सर पर है आसमान
पैरों तले ज़मीन .
मेरी सांसों के आरोह – अवरोह में ,
मेरे रंध्रों में ,
शुद्ध हवा का है प्रवाह .’’
‘’ मैं कितनी खुशनसीब हूँ .’’

कुंजों में एक सरसराहट सी हुई ,
मालती की कोमल पल्लवों पर ,
ठहरी हुई थी हवा ,
मेरे विचारों को भाँप कर ,
मेरे गालों को थपथपा कर
उसने हौले से कहा –
‘’ खुश और नसीब ,
दो अलग अलग है बात .
मुझसे पूछो –
मैं कहाँ कहाँ से ,
होकर हूँ गुज़रती ,
कभी पोखरों से ‘
कभी पिंजरों से ,
कभी चहारदीवारी में झांक कर ,
तंग गलियों में कभी फंसकर,
मैंने देखा है –
खुशी को खजूर में अटका हुआ ,
और –
नसीब रेत में है दफ़न .’’
क्या बताऊँ -
कहाँ से गुज़र कर ,
मैं मालती की वल्लियों में ,
एक ठाँव हूँ पाती ,
पर कितनी देर . . . . . .?
मुझे मजबूरन बहना होता है ,
मैं राजमार्ग पर हूँ जब चलती ,
कितने दृश्यों से रूबरू होते ,
देखती हूँ कभी ,
श्वेत कपासों की ढेर में ,
एक अस्थिपंजर को ,
जैसे –
रूई नहीं वह अपना सिर धुनता है ‘’

फिर दृश्य बदलता है ,
धनिकों के उद्द्यान में ,
मेरा सुस्त बदन चलता नहीं ,
मचल कर लहराते हुए ,
कभी छ्द्म वेश में ,
सुंदरियों के केश में
कभी अनंग बन ,
हर रूप में ,
हर किसी का मनुहार करना पड़ता है .’’
इतना ही नहीं
मैं मानव की कैद में हूँ
पंखों के चक्रव्यूह में
लगातार चक्कर काट रही हूँ .
और तो और
ए. सी. की घुटन में भी
अपने मुर्दे शरीर की ठंडक से ,
अविरल शीतलता देती हूँ ‘’

हे भद्र नारी !
सारी दुनिया तुम्हें
कहती है – ‘ अबला ‘
पर तनिक विचार करो
क्या तुम ‘अबला’ हो ?
पहचानो अपनी आदिशक्ति -
तुम प्रतिकार कर सकती हो‌,
तुम्हारे पास एक ठोस काया तो है .
तुम सच में खुशनसीब हो .
तुम्हारे आंचल में
अमृत प्रवाहित होता है .
तुम्हारी कुक्षी में ही सृष्टि
निरंतर रचती बिगड़ती है .
तुम ही ब्रह्माण्ड हो !
स्वर्ग की सारी राहें
तुमसे होकर गुज़रती हैं .
हे ममतामयी नारी !
तुम अबला पर अवश नहीं ,
मैं शक्तिशाली ,
पर कितना विवश हूँ .
तुम्हारा एक घर है , एक आंगन ,
पूछ्ने पर एक पता भी है .
मुझसे पूछो , मेरा पता ?
सब के मन में, सब के तन में हूँ
मगर -
मेरा अस्तित्व कहाँ ?
इसीलिये हे सन्नारी !
जब तक तेरी धमनी में ,
अग्नि की धधक है बाकी ,
अपने को संजो लो ,
सँवार लो , बचा लो ‘.
मालती की कुंजों से ,
लहराकर
हवा मेरे गालों को पुनः
थपथपा कर चल दी .
मैं उसे देखती रही ,
तंग गलियों को छोड़ ,
राजमार्ग से गुज़रते हुए
एक नयी मंज़िल की ओर........’
( मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 30, 2013 at 5:55pm

 

सर्वथा एक नवीन प्रस्तुति! बहुत सुन्दर और मनोहारी! आपकी सृजनशीलता को नमन !

आपको बधाई, आदरणीया कुंती जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by SALIM RAZA REWA on May 29, 2013 at 10:45pm

हवा मेरे गालों को पुनः
थपथपा कर चल दी . 
मैं उसे देखती रही , 
तंग गलियों को छोड़ , 
राजमार्ग से गुज़रते हुए
एक नयी मंज़िल की ओर. achi rachna hai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 29, 2013 at 8:06pm

 खुश और नसीब , 
दो अलग अलग है बात ..........हम्म 

मैंने देखा है –
खुशी को खजूर में अटका हुआ ,
और – 
नसीब रेत में है दफ़न .’’.....................वाह !

मैं शक्तिशाली ,
पर कितना विवश हूँ .
तुम्हारा एक घर है , एक आंगन ,
पूछ्ने पर एक पता भी है .
मुझसे पूछो , मेरा पता ?
सब के मन में, सब के तन में हूँ 
मगर - 
मेरा अस्तित्व कहाँ ?..................बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

हवा से इतनी गहरी बातचीत..आपकी संवेदनशीलता के पंखों की उड़ान पर मुग्ध हूँ.

हार्दिक बधाई. 

Comment by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 3:42pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुई है आदरणीया ///हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service