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दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं

तमाम विसंगतियों के विरोध में एक ताज़ा ग़ज़ल .....


दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं 
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं 

किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का

अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं

आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है 
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं

 

उम्र फिर गुज़रेगी शायद राम की वनवास में

दासियों के फेर में फिर रानियाँ आने लगीं

 

बीच दरिया में न जाने सानिहा क्या हो गया

साहिलों पर खुदकुशी को मछलियाँ आने लगीं

 

है हवस का दौर यह, इंसानियत है शर्मसार

आज हैवानों की ज़द में बच्चियाँ आने लगीं

 

यूँ शहादत पर सियासत का नया फैशन दिखा

शोक जतलाने को नीली बत्तियाँ आने लगीं

 

हमने सच को सच कहा था, और फिर ये भी हुआ

बौखला कर कुछ लबों पर गालियाँ आने लगीं

 

शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़

जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं

 

आज कह के कल मुकर जाने को सब तय्यार हैं

शाइरों में भी सियासी खूबियाँ आने लगीं

 

उसने अपने ख़्वाब के किस्से सुनाये थे हमें

और हमारे ख़्वाब में भी तितलियाँ आने लगीं  



- वीनस केसरी 
मौलिक व अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 2:30am

सीमा जी
अशआर पर तवील तब्सिरा करके अपना कर्ज़दार बना लिया
बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 2:29am

नादिर खान साहिब,
आपकी इनायत है जनाब
असतिज़ा से जो थोडा बहुत सीखा समझा है उसे साझा कर लेता हूँ और आप लोगों की इनायत और करम है कि मुहब्बत हासिल हो जाती है

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 2:27am

अनन्त साहब,
तहे दिल मामनूनो मशकूर हूँ

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 2:26am

नूरैन साहिब आपकी ज़र्रा नवाज़िश है

आपकी मुहब्बतों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 8:18pm

हमेशा की तरह एक धमाकेदार ज़ोरदार ग़ज़ल हर शेर अपने आप में अपनी मिसाल .......कहन और शिल्प की मजबूत प्रस्तुति है आपकी ग़ज़ल  ....................

दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं.....वाह क्या शालीनता से वार किया है 

किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का
अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं..........बहुत खूब मन को भिगो दिया इस शेर ने यद्यपि बिम्ब नया नहीं है पर कहने का ढंग बिलकुल नया 

आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं....वाह 

हमने सच को सच कहा था, और फिर ये भी हुआ

बौखला कर कुछ लबों पर गालियाँ आने लगीं................यही होता है वीनस जी सच को सच कहना बहुत मुश्किल है 

उसने अपने ख़्वाब के किस्से सुनाये थे हमें

और हमारे ख़्वाब में भी तितलियाँ आने लगीं...............क्या कहने इस शेर की मासूमियत के 

दिली मुबारक बाद ......आपकी हर नयी ग़ज़ल के साथ अगली ग़ज़ल आने की प्रतीक्षा शुरू हो जाती है ..शुभकामनाएं अगली ग़ज़ल के लिए 

 

Comment by नादिर ख़ान on May 9, 2013 at 1:25pm

आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है 
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं

 

उम्र फिर गुज़रेगी शायद राम की वनवास में

दासियों के फेर में फिर रानियाँ आने लगीं

 

बीच दरिया में न जाने सानिहा क्या हो गया

साहिलों पर खुदकुशी को मछलियाँ आने लगीं

 

है हवस का दौर यह, इंसानियत है शर्मसार

आज हैवानों की ज़द में बच्चियाँ आने लगीं

आदरणीय वीनस जी  हम तो आपकी गज़लों और "गज़ल की बातें" के कायल हैं, इसी कड़ी में एक और सम-सामयिक गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 9, 2013 at 1:08pm

वाह वाह वाह वाह आदरणीय वीनस भाई वाह सभी के सभी अशआर ह्रदय स्पर्शी हुए हैं, शिक्षाप्रद गहरी गहरी बातें बहुत ही सरलता से कही है आपने, कुछ अशआरों ने तो लूट लिया भाई जी. दिल से भर भर के ढेरों दाद हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Noorain Ansari on May 9, 2013 at 12:50pm
बहूत ही उम्दा गज़ल 
किसकी करूं तारीफ, हर एक शेर अपने आप में लाजवाब है 
बीनस जी आपकी इस कृति को  मेरा दिल से आदाब  है. 
OBO की दुनिया में आप हमेशा मेरे लिए प्रेरणाश्रोत रहे है.हर बार आपकी रचना पढ़ के मन अभिभूत हो जाता हैn. 
Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 10:07pm

डॉ. प्राची जी,
इस नज़ारे इनायत के लिए शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 10:06pm

प्रदीप जी,
आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ
सादर

कृपया ध्यान दे...

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