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नारी तू नहीं है अबला

नारी तू नहीं है अबला
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नारी तू नहीं है अबला 

है शक्ति  स्वयं पहचान 
खुद  को शोषित  मान  ले 
फिर  कौन  करे  सम्मान 
दूषित  जग  से लड़ना होगा
खुद  ही आगे बढ़ना होगा.

रूप  धार कर  रण  चंडी का 

अधिकार  छीन  लेना होगा 

जगा  आत्म  अभिमान 

नारी तू नहीं है अबला 

है शक्ति  स्वयं पहचान 

क्या क्या नही तुझे  सब कहते 

कैसी  कैसी  फब्ती कसते 

तुझे मूढ़   अज्ञानी  कहते 

दुर्गुण आठ सदा  उर रहते 

सब मिल करते  बदनाम 

नारी तू नहीं है अबला 

है शक्ति  स्वयं पहचान 

पोखर सी ख़ामोशी  क्यों 
सागर सी  तू रह मौन
कर बुलंद अपने को तू 
आकाश झुके पूछे तू कौन
जग के इन झंझावातों में 
तुझको स्वयं संवरना होगा 
अब मत रहना अनजान 
नारी तू नहीं है अबला 

है शक्ति  स्वयं पहचान 

  • प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 971

Comment

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Comment by Vindu Babu on April 14, 2013 at 10:29am
आदरणीय कुशवाहा जी नारी वर्ग को उत्प्रेरित करती हुई रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
महोदय कई बार ऐसी स्थितियां देखने को मिलती हैं जहां उसे मात्र शोषण का विषय ही समझा जाता है।
फिर भी विद्वत समाज सुधारोन्मुख है।
सादर शुभकामनाएं
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 13, 2013 at 9:25pm
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा सर जी! नारियों के हृदय में आत्मविश्वास जगाती रचना जिसके लिये आप बधाई के पात्र हैं।लेकिन आदरणीय इस रचना को एक उत्तम गीत में ढाला जा सकता है।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 13, 2013 at 8:35pm

आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम 

ग़ज़ब का आत्मविश्वास जगाती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 8:32pm

आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी,  अतिसुन्दर रचना।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 8:00pm

आपकी बात सच है नारी को लड़ना होगा इसके बगैर आगे का रास्ता कठिन है। आपको बधाई इस आहवाहन के लिए।

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