For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भावना अर्पण करूँ....नवगीत// डॉ० प्राची

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

गूँज लें सारी फिजाएँ

युगल मन मल्हार गाएँ

चंद्रिकामय बन चकोरी

प्रेम उद्घोषण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

मन-स्पंदन कर दूँ शब्दित

तोड़ कर हर बंध शापित

नेह पूरित निर्झरित उर

गान से तर्पण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

भाव झंकृत हृदय धड़कें

सुरमई सब स्वप्न थिरकें

सहज संवेदना स्वीकृत

सर्वदा हो प्रण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

Views: 963

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:24pm

आदरणीया विजयश्री जी,

मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है..

आपने इस नवगीत का रसास्वादन कर अपना बहुमूल्य स्नेह इस रचना को दिया, इस हेतु आपकी आभारी हूँ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:22pm

आदरणीय आशीष सलिल जी,

रचना को आपनें अपनी रूह तक उतर जाने योग्य समझा, इससे ज्यादा मान एक रचना के लिए क्या हो सकता है?

आपकी हृदय से आभारी हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:19pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

नवगीत के अन्तर्निहित भावों और शब्द संयोजन को आपने सराह कर लेखन उत्साह का परिवर्धन किया है...आपकी हृदय से आभारी हूँ.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:17pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी,

रचना के शब्द आपके मन को झंकृत कर सके, लेखन को और क्या चाहिए, सिर्फ पाठकों के हृदय में स्थान के सिवा.

इस हेतु आपका हार्दिक आभार.

..आदरणीय, इस रचना में कहीं भी नारी मन की कुंठा को शब्द नहीं दिए गए हैं, इसमें सिर्फ प्रीत की स्वीकारोक्ति और नेहातिरेक है.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:14pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी,

रचना के भावों के अन्तःस्थल को आप द्वारा मान मिला, इस हेतु आपकी हृदय से आभारी हूँ..सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 5:46pm

आदरेया प्राची दीदी बहुत ही सुन्दर गीत प्रस्तुत किया है आपने पाठ करते करते न जाने कहाँ खो गया, ह्रदय में उठ रहे भावों को कैसे व्यक्त करूँ क्या कहूँ शब्द मिल नहीं पा रहे हैं. इस तरह के गीत कभी कभी पढ़ने के लिए मिलते हैं. अन्य कुछ कहने की क्षमता नहीं है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 5:35pm

प्राची बहन आपका साधुवाद इस मर्मस्पर्शी रचना के लिए। रचना ने पाठक के मन में भी शुचि भावना जागृत कर दी।

Comment by vijay nikore on April 1, 2013 at 2:43pm

आदरणीया प्राची जी:


"रे मन करना आज सृजन वो"  के  बाद  "मनमीत तेरी प्रीत" और अब  "भावना अर्पण करूँ..."

यह एक और उच्च श्रेणी की रचना है जिसको पढ़ते-पढ़ते कोई लय बिना प्रयत्न के ओंठों पर

गीत-सी बन आती है, और आपकी कविता के शब्द  कविता समाप्त होने के बाद देर तक

अंतरमन में प्रतिगुंजित होते रहते हैं और आत्मीय बन जाते हैं।


मन-स्पंदन कर दूँ शब्दित

तोड़ कर हर बंध शापित

नेह पूरित निर्झरित उर

गान से तर्पण करूँ...      ....अति सुन्दर!

 

ऐसी ही कविताओं की प्यास है ... आशा है, शीघ्र और पढ़ने को मिलेंगी और आस पूरी होगी।


सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 2:30pm

भाव संप्रेषण की वाचालता अपने अतिरेक में शब्दातीत ही हो जाती है. निवेदन की भाव-सान्द्रता शब्द-साधन को सबसे पहले नकारती है. उन अत्युच्च क्षणों में विह्वल प्राण की मनोदशा का सूक्ष्म वर्णन हुआ है.  पारस्परिक आर्द्रता में अभिसिंचित युगल मन द्वारा मल्हार राग  का गाना अभिनव प्रयोग लगा.  कहना न होगा, एक -एक पंक्ति प्राणवान है. तभी तो - मरघटों की क्षुब्धता को / ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...   अभिव्यक्त हो पाया है.

वाह !

शब्द-संयोजन सुन्दर है, यों, इसे तनिक और साधा जा सकता था.

यथा,  इस पंक्ति को देखा जाय - सहज संवेदना स्वीकृत / सर्वदा हो प्रण करूँ...

भाव-विह्वलता और आत्मोसर्ग की शुभता से अभिसिंचित इस रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, डॉ.प्राची. 

शुभ-शुभ

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2013 at 1:39pm

 प्रसंशा के शब्द भी शब्दातीत हो गए हैं किन्तु शुचि भावना का अर्पण स्वीकारें ---- लोहा पीटनेवाला इससे ज्यादा नहीं व्यक्त कर पायेगा .प्राचीजी ! साधुवाद .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service