For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सत्य कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘

सत्य कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘ . नाम दया का तू है सागर......सत्य की ज्योति जलाये........सुख लाये तेरो नाम..! जो ध्याये फल पाये........नाम सुमिरन का साक्षात् प्रभाव और महत्व दोनों का ही अनुभव मैंने सहज में परख लिया है। वास्तव में जो सुख में जीता है, उसे न तो नाम सुमिरन का महत्व समझ में आता है और न ईश्वर से साक्षात् ही कर पाता है। वह केवल अपने स्वार्थ में लिप्त रह कर केवल कपट और मोह मे ही फॅसा रहता है। वास्तविकता तो यह भी है जो व्यक्ति स्वयं को अकिंचन, शून्य और अनाथ मान परबृहम की सत्यता पर विश्वास कर पूर्ण रूपेण आस्था में रम जाता है। केवल उसे ही उचित समय पर अथवा अन्त में नाम सुमिरन का प्रभाव, स्वरूप, सत्य व सुख की प्राप्ति होती है। सत्य का परिणाम देर से ही सही किन्तु उज्ज्वल ही मिलता है।1 जीव को दुःख का अनुभव सदैव होता रहता है जबकि सुख का अनुभव वह करने में असफल ही रहता है। अपने सुख की जानकारी हमें दूसरों के मुख से ही ज्ञात होती है। दुःख तो इस नश्वर संसार में अहंकार, मद, मोह, काम, लोभ आदि के कारण ही बना रहता है। और यह मायावी संसार/प्रक्रृति हमें इन्ही व्यसनों में सदा लगाये रहती है। वास्तव में हम यह समझ नही पाते हैं कि हमें किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। हम स्वयं ही ठीक से ज्ञान प्राप्त नही कर पाते और दूसरों का मार्गदर्शन करने में संलग्न हो जातें हैं। प्रायः यह प्रचलित है कि जब मनुष्य की आयु 40-50 वर्ष की हो जाती है, तभी उसे अध्यात्म पर विचार करना चाहिए। अन्यथा वह पारिवारिक दायित्वों से विमुख हो जायेगा, परन्तु एैसा नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि जो कुछ भी हमने अपने 40-50 वर्षों में ज्ञान अर्जित किया है, उसे हम अपने 04-25 वर्ष के बच्चों पर थोपना चाहते हैं। शायद हम यह भूल जाते हैं कि तत्कालीन माहौल का वर्तमान के परिवेश में कितना परिवर्तन हो चुका है। एक सच्ची कथा कुछ इस प्रकार है-- जीव, एक बीमार मनुष्य है। जीव ही क्यों सारा नश्वर जगत ही इसके प्रभाव से नही बच सका है। सभी जीव किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं। किसी न किसी उलझन में फंसे हुए हैं। उनके पास न तो समय नहीं है और न ही प्रभु नाम का सुमिरन करने की सुधि ही हैं। इक्का-दुक्का जो सतसंग में चले जाते है, तो उनका ज्ञान-लगन, मात्र सतसंग तक ही सीमित रहता है। सतसंग समाप्त होते ही वे अपना सारा ज्ञान वहीं छोड़ कर रिक्शा करने अथवा घर पहुंचने की शीघ्रता में ही ध्यान लगा लेते हैं। सतसंग में हजारो का गुप्त दान करके स्वयं को धन्य समझ लेते हैं किन्तु रिक्शे वाले को पूरे पां%

Views: 783

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2013 at 11:29pm

आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी,  हां जी, प्रभु प्रेम क्या कुछ नही करता है, सब उसी का दिया है।  आपने पूरी कथा पढ़ी। आपके आशीष भरे स्नेह से मै कृत्य कृत्य हो गया। आपका हार्दिक आभार। सादर, 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2013 at 11:26pm

आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी, हां जी, प्रभु प्रेम क्या कुछ नही करता है, सब उसी का दिया है। आपने पूरी कथा पढ़ी। आपके आशीष भरे स्नेह से मै कृत्य कृत्य हो गया। आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 10:17pm

सुन्दर कथा.

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 7:36pm

आदरणीय, सुधीजनो एवं मित्रो प्रस्तुत कथा का अंश किन्ही तकनीकी कारणों से अधूरा रहा। यद्यपिकि इस कथा को कई भाग में प्रस्तुत किया जाना है। आगे कोशिश करूंगा कि कोई व्यवधान न आये। आपके सहयोग का आकांक्षी हूं, तथा व्यवधान के लिये क्षमा चाहता हूं।.. आदर सहित निवेदन...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 29, 2013 at 11:09am

 सतसंग में हजारो का गुप्त दान करके स्वयं को धन्य समझ लेते हैं किन्तु रिक्शे वाले को पूरे पैसे देने में कतराते

है और उससे मौल भाव करने में समय ख़राब करते है | मनुष्य का बोझा धोकर रिक्शा हाक कर आपको आराम

से घर पहुचाने वाले रिक्शा श्रमिक को खुश कर उसके मुहं से दुआए लेने से आपका जो भला होगा वह बड़े राशि सत्संग में दान करने पर भी होने वाला नहीं है |  शायद कहानी का अंत ऐसा ही करना चाहते थे न आप केवल प्रसाद जी | अच्छी रचना के लिए बधाई 

Comment by coontee mukerji on March 28, 2013 at 10:59pm

केवल प्रसाद जी ,आपकी कथा तो अधूरी है......रिक्शे तक खत्म हो गई..........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service