For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(मौलिक व अप्रकाशित)

आया था मैं
शहर में
खोजने
रोजगार का अवसर
नहीं था गाँव मेँ
दो जून
खाने का सहारा
पाँच बीघा जमीन थी
भेंट चढ गई
सरकारी योजना के
अमले कहकर गये
बङी सङक बनेगी
मुआवजा मिलेगा
सङक बन गई
बहुत अच्छी बनी
चमकती थी
सीसे के जैसी
इंतजार किया
मुआवजे का
नहीं आये अमले
चक्कर काटे
दफ्तरों के
चप्पलें घिस गई
मुआवजा नहीं मिला।

रोटी का सहारा छिना
जमा पूँजी खत्म हुई
फाकामस्ती के दिन आये
पर मुआवजा नहीं मिला
अब तक आस थी
वो भी टूट गई
चिंता सवार हुई
दो जून रोटी की
गाँव में प्रयास किया
मजदूरी की
आसान नहीं थी
मजदूरी करनी
एक शिक्षित के लिए
बजाय खेती के
आखिर छोङा गाँव
रुख किया
शहर की तरफ
तलाश मेँ रोजगार की।

कौन रहने देता है
बिना पैसों के
अच्छे मकान में
शहर की
झोंपङ पट्टी में
रहने लायक कमरा लिया
कमरा तो क्या
झोंपङी ही थी
यहाँ आसान थी
मजदूरी करनी
मजदूरी के लिए भटका
एक दिन गया
फाकामस्ती की
दूसरे दिन काम मिला
बिल्डिंग बनाने वाले नें
काम दिया
दौ सौ रुपये दिन का
दोपहर हुई
काम से थका माँदा
ऊपर चढ रहा था
सिर पर बठ्ठल
बोझा भारी
हाथ काँपे
पैर लरजे
आँखें झपकने लगीं
अँधेरा छाने लगा
पकङ छूटने लगी
बठ्ठल पकङे रहा
रोजी का सहारा था
कैसे छोङता
पकङ छूटी
नीचे गिरा
गनीमत थी
पहला माला था
एक टांग टूटी
पलस्तर चढा
आवेदन किया
ठेकेदार को
मुआवजे के लिए
ठेकेदार नेँ कहलवाया
गलती मेरी थी
अगर कमजोर था
नहीँ चाहिए था
ऊपर चढना
आवेदन ठुकरा दिया
मुझे रोना आया
किस्मत पर अपनी
शहर आया था
कमाने को कुछ
यहाँ भी वही बात
गाँव छोङा था
जिसके कारण
मुआवजा नहीं मिला।

- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'

Views: 378

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 18, 2013 at 8:12am
आ॰ सौरभ पाण्डे जी, आपकी प्रोत्साहन करने वाली प्रतिक्रिया ही इस रचना की सार्थकता दर्शा रही है। भविष्य में भी इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:04pm

सतवीर भाई, आपकी इस कविता के लिए दिल से बधाई कह रहा हूँ. सरल सामान्य शब्दों में आपने जिस तथ्य को उठाया है वह आज गाँव के विस्थापितों का बहुत बड़ा हिस्सा भोगता है.

सामान्य शब्दों का सुन्दर प्रयोग हुआ है. इस सपाट सी दिखती कविता में जो दर्द है उसको निखार कर बाहर लाने में आपके शब्द पूरी तरह से सक्षम हैं. 

बहुत-बहत बधाई.. .

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 14, 2013 at 4:31pm
रचना पर अपने विचार प्रकट करने के लिए आभार आ॰ डॉ॰ स्वर्ण जे. ओमकुंवर जी।
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 14, 2013 at 3:14pm

बहुत अच्छा 

संवेदना एवं भावपूरण 
धन्यवाद सुंदर रचना के लिए 
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 14, 2013 at 12:24pm
रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद आ॰ योगी सारस्वत जी।
Comment by Yogi Saraswat on March 14, 2013 at 12:17pm

एक टांग टूटी
पलस्तर चढा
आवेदन किया
ठेकेदार को
मुआवजे के लिए
ठेकेदार नेँ कहलवाया
गलती मेरी थी
अगर कमजोर था
नहीँ चाहिए था
ऊपर चढना
आवेदन ठुकरा दिया
मुझे रोना आया
किस्मत पर अपनी
शहर आया था
कमाने को कुछ
यहाँ भी वही बात
गाँव छोङा था
जिसके कारण
मुआवजा नहीं मिला।

सुन्दर अभिव्यक्ति

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service