For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माथे पर सलवटें;

 

आसमान पर जैसे

बादल का टुकड़ा थम गया हो;

समुद्र में

लहरें चलते रूक गयीं हों,

 

कोई ख्याल आकर अटक गया।

 

धकियाने की कोशिश बेकार,

सिर झटकने से भी

निशान नहीं जाते।

 

सावन के बादलों की तरह

घुमड़कर अटक जाता है

वहीं

उसी जगह

उसी बिन्दु पर।

 

काफी वजनी है;

सिर भारी हो चला

आंखें थक गईं,

पलकें बोझल।

 

सहा नहीं जाता

इस विचार का वजन।

 

आदत नहीं रही

इतना बोझ उठाने की;

अब तो घर का राशन भी

भार में इतना नहीं होता कि

आदत बनी रहे।

 

बहुत देर तक अटका रहा;

वह कोई तनख्वाह तो नहीं

झट खतम हो जाए।

 

अभी भी अटका है वहीं

सिर को भारी करता।

बहुत देर से कुछ नहीं सोचा।

 

सोचते हैं भी कहां

सोचते तो क्यों अटकता।

 

इस न सोचने,

न बोलने के कारण ही

अटक गयी है जिंदगी।

 

तालाब में फेंकी गई पालीथीन की तरह

तैर रहा है विचार

दिमाग में

सोच की अवरूद्ध धारा में मंडराता।

 

अब मजबूर हूं सोचने को

कैसे बहे धारा अविरल

फिर न अटके

सिर बोझिल करने वाला

कोई विचार।

     - बृजेश नीरज

Views: 620

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 2:29pm

संदीप भाई आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 2:28pm

आदरणीय विजय निकोर जी,
आपका हार्दिक आभार!
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 2:27pm

आदरणीया प्राची बहन,

आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!

 

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 2:24pm

भाई केवल प्रसाद जी आपका आभार!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 10:47am

बहुत ही सुंदर रचना है
विचारों का यूँ अटकना और उसे उतनी ही सुंदरता से शब्द दे देना
वाह
बहुत बहुत बधाई आपको वाह आदरणीय वाह

Comment by vijay nikore on March 13, 2013 at 10:45am

आदरणीय बृजेश जी:

 

इन उत्कृष्ट भावों  के लिए आपको बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2013 at 10:35am

आदरणीय बृजेश कुमार जी
मस्तिष्क में यदि कोइ ऐसा विचार अटक जाए जिसके पार जाने का कोइ तरीका न सूझे , तब मन में उपजने  वाली बिलबिलाहट को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है ....

बहुत देर तक अटका रहा;

वह कोई तनख्वाह तो नहीं

झट खतम हो जाए ........ यह बिम्ब बहुत अच्छा लगा 


शुभकामनाएं

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 9:52am

माननीय श्री बृजेश कुमार सिंह जी, सुप्रभात! एक अच्छा चिन्तन और कशिश  को झकझोर देने वाली धारा प्रवाह कविता..वाह.वाह..! बहुत.बहुत बधाई..!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service