For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(मौलिक व अप्रकाशित)

गोधूली वेला है
पर
गौ की धूली नहीं
जमाने के विकास तले
खो गयी है कहीं
गौ के खुरों की
गलीयों और
गाँव के ऊपर
उङती धूल
अब तो
नजर आती है
सिर्फ और सिर्फ
मोटरगाङियों के
टायरों की धूली
और
उनका धूम्र
चूल्हों और हारों से
उठता धूम्र भी
गाँवों से
होने लगा है गायब
नजर आता है अब
रसोई में रखा
गैस सिलेण्डर
दूध की कढावणी
और
गाय के लिए
बँटा (गर्म खिचङी)
तो बन्द हो ही गया।

- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'

Views: 651

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 16, 2013 at 6:48am
आ॰ सौरभ पाण्डे जी, रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मिली, रचना सार्थक हुई। समय चक्र नें बहुत कुछ परिवर्तन किया है। कुछ परिवर्तन जो होने चाहिए, वो भी और कुछ परिवर्तन जो नहीं होने चाहिए, वो भी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 2:08am

समय चक्र परिवर्तन का हामी है.. क्या कीजियेगा..

रचना हेतु बधाई

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 4:19pm
आ॰ लक्ष्मण प्रसाद लङीवाला जी, टिप्पणी स्थल पर अंकित आपके शब्दों से बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ मैं। आपके शब्दों ने एक सच्चाई उजागर की है। आपका बहुत बहुत आभार।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2013 at 3:59pm

अब क्या किया जावे सवीर जी, गो की धूलि अब उड़े नहीं, गोधुली वेला समझे नहीं

                                       फिर से पेड़ पोधे उपजे, चरागाह बने गौशाला न रही

                                       बिरकाली गाँव छोड़, सतबीर बीका के नगर आ रही

                                       संध्या वक्त की संध्या, न जाप में न भजन सुनावही

गोधुली वेला का ध्यान दिलाने पर माँ का संद्या पर भजन की याद तजा हो गयी, हार्दिक बधाई स्वीकारे                                           

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 3:51pm
आ॰ केवल प्रसाद जी, सादर प्रणाम।
आपने इस रचना पर अपने अनमोल विचार रखकर रचना की सार्थकता सिद्ध कर दी है, आभार।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 3:48pm
टिप्पणी स्थानक पर अपने हस्ताक्षर करने के लिए आभार आ॰ बृजेश कुमार सिंह जी।
आजकल बच्चों को जब तक इवनिंग नाम ना लो तब गौधूली और संध्या, साँझ समझ में नहीं आती है।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 3:42pm
टिप्पणी स्थानक पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर हमारी रचना को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए शुक्रिया आ॰ जवाहर लाल सिँह जी।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 8:47am

माननीय श्री सतवीर वर्मा जी, सुप्रभात! सादर प्रणाम!!,आपकी कविता .गो धूली...‘गोधूली वेला है, पर गौ की धूली नहीं, जमाने के विकास तले खो गयी है!‘ वास्तव में शहरों का प्रदूषण अत्यधिक विकट समस्या है--- बहुत-बहुत बधाई !

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:23am

अब तो शहर के लोग इन देशज शब्दों का मतलब भी नहीं समझ पायेंगे।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 13, 2013 at 4:16am

सत्य !

गोधूली वेला है
पर
गौ की धूली नहीं
जमाने के विकास तले
खो गयी है कहीं
गौ के खुरों की
गलीयों और
गाँव के ऊपर
उङती धूल
अब तो
नजर आती है
सिर्फ और सिर्फ
मोटरगाङियों के
टायरों की धूली
और
उनका धूम्र

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service