For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

प्रेम नाम है-- अहसास का,

अहसास जो करे -

कर सकता है,अभिव्यक्त वही।

घर आँगन में प्यारी सी,  

कलियों की खुशबु से महक

सास का बहु से,

बहु का सास से प्यार,

घर बने खुशहाल यही|

 

प्रेम नाम है मिलन का

दो दिल मिले  

एक दूजे के हुए, 

जिस्म दो, प्राण एक, 

एक दूजे में समाए।  

जैसे दीया और बाती 

प्रेम बरसे वही ।

 

प्रेम नाम है प्यार का-

जैसे राधा का कृष्ण से 

गोपियों का कृष्ण से

तब कहते है-

मेरे तो श्याम 

केवल एक वही।

 

प्रेम नाम है पूजा का 

हो मंदिर मस्जिद 

या गुरुद्वारे में 

नहीं तो मन मदिर -

में ही सही ।

 

प्रेम नाम है लगाव का 

एक दूजे से, 

चाहे हो प्राणी या पेड़ पौधे

कुछ भी, कहावत है-

दिल लगाया जिससे, 

परी उसके आगे-

कुछ भी नहीं ।

 

प्रेम,प्यार  नाम है -

आत्मा से आत्मा-

के मिलन के अहसास का,

इस लोक में या परलोक में,

देवयोग से,

हो सकता है कही।

भौतिक रूप से पास रहे, 

यह जरूरी तो नहीं । 

 

सच्चा प्रेम वही 

जो दिल से करे, 

आँखों से बरसे, 

मिलने को तरसे-

किसी से न डरे, 

एक-दूजे पर मर मिटने का भाव,

सच्चा प्रेम वही ।

 

प्रेम प्रेम होता है ,

रंग न उसका-

कोई होता है,

निश्चल मन होता है |

करने का -

न कोई ढंग होता है,

दूसरे को,प्रेम का -

अहसास हो- 

ढंग होता है वही, सही ।

 

प्रेम प्रेम होता है,

सम्पूर्ण समर्पण का 

भाव होता है मीरा जैसा, 

प्रेम में पागल होता है-

प्रेम करने वाला- 

फिर उन्हें समझा

कौन सकता है,

चतुर या बुद्धिमान 

उद्धव भी नहीं । 

 

प्रेम नाम है त्याग का,

उर्मिला का अपने पति लक्ष्मण से,

भरत का अग्रज श्रीराम के प्रति,

त्याग,प्रेम का ही भाव था ।

विरह की आग में जलना,

क्या प्रेम का अहसास नहीं । 

प्रेम नाम है आसक्ति का,

स्नेह भाव का,भरत मिलाप, 

कृष्ण-सुदामा मिलन 

क्या प्रेम का -

उत्कृष्ट भाव नहीं ?

 

प्रेम नाम है सुद्रढ़ विश्वास का,

अटूट विश्वास,सदभाव, 

जहां न भ्रम पलता है.

न संशय होता है,

प्रेम प्रेम होता है-

अहसास जो कर सके,

अभिव्यक्त करे वही । 

 

अटूट प्रेम भाव है माँ का 

शिशु के प्रति, 

जो गर्भ में ही,अपने मन के-

ताने बाने से योग्य बनाती-

अभिमन्यु सा, फिर पालती-

दूध पिला स्तन से,शिक्षा दे,

पुत्रवत स्नेह कर- 

सुयोग्य बनती माँ ही |

 

योग्य बन व्यक्ति- 

असीम श्रद्धा और प्रेम रखे- 

जननी माँ से,मात्त्रभूमि से- 

जिसके रक्त का कण कण 

देन है उस माटी का, 

अर्पित करे- 

अपना तन मन धन,

मात्त्रभूमि का मान बढाने में,

अपने लहू का कतरा कतरा 

न्यौछावर करदे उसकी रक्षा में,

तो होगी परिलक्षित- माँ के प्रति  

प्रेम की पराकाष्ठा वही |

 

सम्पूर्ण प्रेम का पाठ है यह, 

अहसास जो करे,

कर सकता है, अभिव्यक्त वही |

 

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2013 at 9:30pm

प्रेम की अभिव्यक्ति रचना पसंद कर मान बढाने  के लिए और पुर्णतः सहमत होने के लिए आपका हार्दिक आभार 

आदरणीया कुंती मुखर्जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 11:42am

प्रेम की अभिव्यक्ति रचना लिही नही, लिख गयी, दिल में अभ्व्यक्त कलाल्म से कागज़ अप आ गयी, आपको यह

भा गयी, यह प्रमाण है की आप के दिल में भी अथाह प्रेम समाया है | रचना की तारीफ़ आपने नहीं, आपके कंठ ने स्वतः करदी | दिल से हार्दिक बधाई स्वीकारे आदनिया राजेश कुमारी जी--

प्रेम है तो  जीवन है,  यह  जीवन का  सार,

तन मन धन सब व्यर्थ है, गीता के ये सार | -लक्ष्मण 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 11:06am

प्रेम पर ही ये दुनिया कायम है प्रेम जड़ चेतन सभी में प्रेम समाया है प्रेम के विभिन्न आयाम विभिन्न दृष्टिकोणों से गुजरती हुई आपकी ये रचना दिल में घर करने योग्य है बस पढ़ती चली गई तारीफ के लिए शब्द कम हैं बहुत बहुत बधाई आपको | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 10:53am

विशेष आयाम नहीं, आदरणीय.  आपकी अभी तक की प्रस्तुतियों से सर्वथा भिन्न इस शैली में हुआ प्रस्तुत रचनाकर्म अपने कथ्य और तथ्य से मुझे सहसा चौंका दिया.

जिन पाठकों की टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं वे वस्तुतः सम्मानित सदस्य हैं.  किन्तु उनके उद्धरण का क्या प्रयोजन, आदरणीय ? हमने तो अपने विचार रखे हैं, जैसा कि सभी करते हैं.

सधन्यवाद.. .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 16, 2013 at 10:28am

आपकी टिपण्णी हर बार सोचने को विवश करती है | इस रचना को "एक तरह की नै अभिव्यक्ति" कह कर आपने 

मेरी जिज्ञासा बढा दी है | क्यों की इस रचना पर ओ बी ओ के कार्यकारिणी या पुराने मान्य विद्वजनो से (जिनकी

टिप्पणिया प्राप्त हुई है वे भी सब सम्मानित सदस्य है,उनके प्रति पूर्ण आदर रखते हुए)आपके अतिरिक्त किसी 

की टिपण्णी प्राप्त नही हो पायी | कुछ ज्ञानवर्धन की आकांशा है आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी | पूर्ववत टिप्पणी 

पर हार्दिक आभार स्वीकारे |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 1:10am

एक तरह की नई अभिव्यक्ति हेतु बधाई, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 11:10am

आपको कविता के भाव हृदय को छूने वाले मनमोह लगे, मेरा लिखना सार्थक हुआ, हार्दिक आभार स्वीकारे

स्नेहिल सावित्री राठौर जी  !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 10:02am

सही कहा आपने वेदिका जी, प्रेम की अवहेलना करना बड़ी ही भूल है,क्योंकि प्रेम ही संसार में सारे सुखों का मूल है,

रचना पसंद कर सापेक्ष टिपण्णी कर उत्साह वर्धन करने के लिय हार्दिक आभार आपका 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 9:54am

रचना सुन्दर लगी इसके लिए आभार स्वीकारे श्री आशीष कुमार त्रिवेदी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 9:47am

अनवर भाई मेरे लिए यह सुखद अनुभूति है कि आपको कविता में प्रेम का श्वास्व्त रूप नजर आया, हार्दिक आभार आपका 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service