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पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है

पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है।

खौफ़ में साये में जीने का हुनर मेरा भी है॥

क़त्ल, दहशत, बम धमाके, हैं दरिंदे हर तरफ,

वहशतों के दौर में मुश्किल सफ़र मेरा भी है॥

देखना है कब तलक लेगा मेरा वो इम्तहान,

प्यार की बाज़ी में सब कुछ दांव पर मेरा भी है॥

मुड़ के अब तो देखने की तुमको ही फुर्सत नहीं,

कारवां के साथ तेरे एक सर मेरा भी है॥

उम्रभर रोती हैं आँखें बच के रहिए इश्क़ से,

ये तजुर्बा था किसी का अब मगर मेरा भी है॥

हर तरफ सहरा है रस्ते गुम हैं मंज़िल लापता,

और उसपे बेख़बर अब राहबर मेरा भी है॥

हो गया है क़त्ल उसका चुप रही इंसानियत,

जब परिंदे ने कहा के ये शज़र मेरा भी है॥

तुझको दुनिया चाँद से तशवीह देती है मगर,

इस हंसीं रुख़सार पर कुछ तो असर मेरा भी है॥

इश्क़ के मारों में “सूरज” तू अकेला ही नहीं,

हुस्न के बाज़ार में खूने-जिगर मेरा भी है॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 16, 2013 at 12:03am

सौरभ जी सादर नमस्कार ! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिली यही क्या कम है...लेट लतीफ़ तो हो ही जाता है....ग़ज़ल आप के दिल तक पहुंची ...आपकी दाद मिली अच्छा लगा। साभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2013 at 10:54pm

डॉक्टर साहब..  बधाई-बधाई-बधाई !

सारा कुछ इस मुआफ़ी के साथ कि आपकी ग़ज़ल पर देर से पहुँच पा रहा हूँ.

सारे शेर आपकी शैली को संतुष्ट करते हुए हैं.   लेकिन इस शेर को विशेष रूप से कोट कर रहा हूँ -

तुझको दुनिया चाँद से तशवीह देती है मगर,
इस हंसीं रुख़सार पर कुछ तो असर मेरा भी है॥  .. . .  अह्हाह !

दिल जीत लिया, आदरणीय भाई आपने.. .

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 13, 2013 at 2:25pm

जवाहर भाई और संदीप जी आप दोनों का हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ...

साभार सूरज 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 7:19am

वाह सर जी वाह

अभी इसी जमीं पे वीनस सर जी ग़ज़ल पढ़ कर आ रहा हूँ

आपने भी कमाल किया है साहब

इक इक शेर तराशा हुआ
हर शेर पे दाद क़ुबूल कीजिये सर जी

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 13, 2013 at 5:03am

इश्क़ के मारों में “सूरज” तू अकेला ही नहीं,

हुस्न के बाज़ार में खूने-जिगर मेरा भी है॥

वाह वाह डॉ. साहब, क्या बात कही है!

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 12, 2013 at 8:15pm

राजेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 5:30pm

बहुत ही अच्‍छी गज़ल कहीं है आपने डॉ0 साहब, दिली दाद

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 12, 2013 at 12:44pm

डॉ प्राची जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 12, 2013 at 12:44pm

ब्रजेश जी, सतवीर जी दिनेश और राम शिरोमणि जी आप सभी की दिली दाद मिली और हौसला आफजाई किया इसलिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ।आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी भी मेहनत सार्थक हुई। आप सभी का पुनः आभार !

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 11:10am

आदरणीय डॉ. सूरज बाली जी,वाह क्या बात! बहुत बेहतरीन! 

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