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इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

सपने किसके किससे कम हैं
सबके अपने अपने गम हैं

पर पीर नहीं दिखती अब तो
हर मानव पत्थर के सम हैं

अपने अफई बन के डसते
बस सोच यही अँखियाँ नम हैं

भरते दम ख्वाब सजा कल के
मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को कह वारिस संस्कृति के
फिरते कितने अब गौतम हैं

न विरोध कहीं न बगावत है
सब चोर अभी तक कायम हैं

सब दीमक पाल रहे खुद ही
वन में अब साल न शीशम हैं

अब "दीप" बसंत नहीं खिलता
बस रंज भरे हर मौसम हैं

संदीप पटेल "दीप"

"2 दुर्मिल सवैया छंद"

सपने किसके किससे कम हैं सबके अपने अपने गम हैं
पर पीर नहीं दिखती अब तो हर मानव पत्थर के सम हैं
अपने अफई बन के डसते बस सोच यही अँखियाँ नम हैं
भरते दम ख्वाब सजा कल के मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को
कह वारिस संस्कृति के फिरते कितने अब गौतम हैं
न विरोध कहीं न बगावत है सब चोर अभी तक कायम हैं
सब दीमक पाल रहे खुद ही वन में अब साल न शीशम हैं
अब "दीप" बसंत नहीं खिलता बस रंज भरे हर मौसम हैं

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on February 6, 2013 at 4:12am

वाह संदीप भाई आपने जो कारनामा किया है उसके लिए एक ही वाक्य याद आता है
"चमत्कार को नमस्कार"

जिंदाबाद भाई जिंदाबाद ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 11:58pm

कमाल !!! .. यह आपसे ही संभव था..  अद्भुत !

ग़ज़ल को क्या खूब निभाया है ! बहुत बढिया .. और छंद भी शिल्प की दृष्टि से शुद्ध.  कथ्य का जवाब नहीं.. . ग़ज़ल की तासीर और सवैया छंद का दुलकी चलती गेयता .. मैं बार-बार पढ़ता जा रहा हूँ....

भरते दम ख्वाब सजा कल के
मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को कह वारिस संस्कृति के
फिरते कितने अब गौतम हैं

न विरोध कहीं न बगावत है
सब चोर अभी तक कायम हैं... 

वाह संदीप भाई वाह .. .  क्या करूँ कि लगे हम निसार हैं. कैसे बधाई दूँ , भाई.. !!

एक बात : हर मानव पत्थर के सम हैं ... में हर की जगह सब कर लें, भाईजी, मिसरा बहुवचन का हो जायेगा.

दूसरे,

सब दीमक पाल रहे खुद ही
वन में अब साल न शीशम हैं .. 

उला में सब की जगह वन और सानी में वन में की जगह दिखता कर देखें,.. क्या कुछ अलहदे भाव उभरते हैं !??.. यह सुझाव भर है.

वन दीमक पाल रहे खुद ही
दिखता अब साल न शीशम हैं .. 

बहरहाल, मन आज अतिरेक में है, संदीपभाई.. . ऐसी रचना प्रस्तुति , ऐसे प्रयोगों का होना इस मंच के लिए गौरव के क्षण हैं.

हार्दिक शुभकामनाएँ.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 5, 2013 at 10:59pm

अभिभूत हूँ , इस प्रयास को देखकर मन हर्षित है , बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल , वाह वाह , बहुत बहुत बधाई भाई संदीप जी |

कृपया ध्यान दे...

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