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बह रही थी एक नदी मेरे सपने में
रह गयी फिर भी प्यासी सपने में

जी रही थी इस दुनिया में मगर
देखती थी दूसरी दुनिया सपने में

करती थी इंतेजार उसका दिनभर
आता था जो आंसू पोछने सपने में

यकीन था आएगा वो पूरा करने
कर गया था वादे, जो सपने में

ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में
बस गया था अक्श जिसका सपने में

काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में

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Comment

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Comment by shubhra sharma on February 10, 2013 at 9:47am

श्री मनोज नौटियाल जी  , आपकी सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Manoj Nautiyal on February 10, 2013 at 9:28am

सुन्दर भाव , शुभ्रा जी शुभकामनायें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 12, 2013 at 9:16pm

स्वागत है आदरणीया |

Comment by shubhra sharma on January 12, 2013 at 9:11pm

आदरणीय बागी जी  सराहना हेतु धन्यवाद, आपकी अभिव्यक्ति का इंतज़ार था मुझे 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 12, 2013 at 9:06pm

अच्छी रचना आदरणीया शुभ्रा जी, बधाई |

Comment by shubhra sharma on January 12, 2013 at 9:05pm

अनंत जी मेरी रचना अच्छी लगी आपको , धन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 12, 2013 at 11:33am

शुभ्रा जी सपने ही सपने में अपने को आपने बहुत ही सुन्दरता के साथ व्यक्त किया है, सुन्दर रचना हार्दिक बधाई .

Comment by shubhra sharma on January 12, 2013 at 9:11am

आदरणीय  सतीश जी शुक्रिया 

Comment by satish mapatpuri on January 12, 2013 at 2:44am

काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में 

वाह शुभ्रा जी वाह .... कमाल की अभिव्यक्ति . आपके सपने ने तो मुझे भी सपनों की दुनिया में ला दिया . सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई

Comment by shubhra sharma on January 11, 2013 at 8:51pm

अन्वेषा जी  शुक्रिया 

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