For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - शहर की रोशनी में गाँव की ढिबरी बुलाती है !

यहाँ की भागा दौड़ी में वो बेफ़िक्री ही  भाती  है ,
शहर की रोशनी में गाँव की ढिबरी बुलाती है ।

बनावट वाली राधाओं को उनके कृष्ण कब मिलते ,
वो तो मीरा के होते हैं जो उनको मन में गाती है ।

सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,
ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी  याद आती है ।

पिता की डांट से गुमसुम जो बैठी थी उदासी में ,
लिपटकर माँ के आँचल से वो बच्ची खिलखिलाती है ।

अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,
सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको  सिर नवाती है ।

हटाकर राह से पत्थर मुसाफिर बढ़ते जाना तुम ,
सफलता हौसले वालों को सीने से लगाती है ।

बुराई से बचो बापू के बन्दर सीख देते हैं ,
बुराई आदमी की खूबियों को घुन सी खाती है ।

बदन की ही तरह मन में भी कोई खोट मत रखना ,
मुलम्मों में सड़ी हो चीज़ तो भी गंध आती है ।
                            -   अभिनव अरुण 
                                  [19122012]

Views: 956

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on January 2, 2013 at 3:04pm
आभार सत्यनारायण जी
Comment by Satyanarayan Singh on December 31, 2012 at 12:23pm

अरुण जी

बेहतरीन ग़ज़ल हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Abhinav Arun on December 29, 2012 at 8:16pm
हार्दिक रूप से शुक्रिया महिमा श्री जी
Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:18pm

सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,
ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी याद आती है ।..बहुत खूब

अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,
सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको सिर नवाती है ।सही फरमाया आपने
आदरणीय अभिनव जी .. बहुत -2 बधाइयाँ आपको

Comment by Abhinav Arun on December 22, 2012 at 7:26pm
आदरणीय प्रदीप जी,सीमा जी,राज लाली जी,संदीप जी एवं वीनस जी आप सबके प्रति हार्दिक आभार ,आप सभी के सानिध्य में कुछ लिख-सीख पा रहा हूँ ,सादर वँदन आप सबका!
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 22, 2012 at 6:44pm

बेहतरीन ग़ज़ल.. मतले ने ही मन मोह लिया.. सरतापा आनंद आ गया!

मेरे फ़ेवरेट ये दो शे'र

सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,

ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी  याद आती है! और..

बदन की ही तरह मन में भी कोई खोट मत रखना ,

मुलम्मों में सड़ी हो चीज़ तो भी गंध आती है ।

बधाईयां भईया.. :-)

Comment by वीनस केसरी on December 22, 2012 at 12:14am

अरुण जी
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें

पूरी ग़ज़ल पसंद आई
यह दो अशआर विशेष पसंद आए

ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी  याद आती है ।
अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,

सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको  सिर नवाती है ।

Comment by राज लाली बटाला on December 22, 2012 at 12:12am

अरुण जी बेहतरीन ग़ज़ल कही है ढेरों दाद कुबूल करें !!!अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,

सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको  सिर नवाती है ।
Comment by seema agrawal on December 21, 2012 at 8:05pm

अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,

सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको  सिर नवाती है........बहुत बढ़िया शेर कहा अरुण जी 
बुराई आदमी की खूबियों को घुन सी खाती है.....सच कहा 
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई अरुण जी 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 21, 2012 at 3:22pm

सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,

ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी  याद आती है ।.... याद दिला दी ..आभार 
बदन की ही तरह मन में भी कोई खोट मत रखना ,
मुलम्मों में सड़ी हो चीज़ तो भी गंध आती है ।........अनुकरणीय ...बधाई 
आदरणीय अभिनव जी, सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
16 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service