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चमन देखा हे

हमने दुनिया का चमन देखा हे
मुश्किल में अपना बतन देखा

बक्त की मार से हो के तबाह
इन्सान को नगे बदन देखा हे

मतलबी यारी निभाने को
दोस्त दुशमन का मिलन देखा हे

देश की सम्पदा मिटाने को
चोरी से होते खनन देखा हे

हर हुनर से यूँ धन कमाने को
लोगो को करते जतन देखा हे

औरो के लिए मोम सा पिघलते
जीवन को हबन करते देखा हे

सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे

डॉ अजय आहत

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 12, 2012 at 2:21pm

अच्छा लिखा है बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:24am

सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे

क्या खूब कही है आपने आज के सन्दर्भ में आपकी कवितायें अपना उद्देश्य पूरा करती दीखती हैं! बधाई!

Comment by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 2:00am

सुन्दर प्रयास है अजय साहिब

रचना ग़ज़ल विधा के बहुत करीब है कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखें तो इसे ग़ज़ल होते देर नहीं लगेगी ...
शुभकामनाएं

Comment by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 2:18pm

Pradeep Sir ji Dhnyabaad

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 11, 2012 at 2:00pm

सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे

बधाई सर जी. 

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