For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

"आज के अखबार में प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम निकला है" जैसे ही हौस्टल में यह बात देवारती को पता चली, बेतहाशा दौड़ पड़ी लाईब्रेरी की ओर, अखबार उठा सारे रोलनंबर देखे, हर पंक्ति ऊपर से नीचे, दाएं से बाएँ, एक बार, दो बार, बार बार, पर उसका तो रोल नंबर ही नहीं था. उसके पैरों तले तो जैसे ज़मीन ही खिसक गयी. अपनी आखों पर यकीन नहीं हुआ, बुझे मन से भारी क़दमों से बाजार जा कर फिर से अखबार खरीदा, एक एक  रोल नंबर पेन से काटा, कहीं उलट पलट जगह न छप गया हो. एक घंटा बीत गया, पर नहीं मिला उसका नंबर, बहुत रोई, चीख चीख कर बिलख बिलख कर, पूरे दिन बाहर भी नहीं निकली. आखिर पूरे साल कितनी तैयारी की थी उसने इस एक परीक्षा  की,दीपावली पर तो घर भी नहीं गयी थी, और परीक्षा भी तो कितनी अच्छी हुई थी, सब प्रश्न आते थे उसे,फिर ये कैसे हो गया... उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो अनुत्तीर्ण हो गयी है.  क्या जवाब देगी वो अपने मम्मी पापा को, कैसे फिर पूरा एक साल और तैयारी कर पाएगी, नहीं करनी उसे अभी शादी-वादी, और कैसे नज़रें मिलाएगी वो अपने गुरुजनों से....बस उलझ गयी थी वो एक यंत्रणा के जाल में....

अचानक कुछ आवाजें  सुन, रात ग्यारह बजे उसने दरवाजा खोला तो पता चला कि अखबार में तो अधूरा रिजल्ट आया था,लेकिन अंतरजाल पर पूरा है,  अब रात को कंप्यूटर कहाँ से लाये.....!

तरह तरह के सवाल चलते रहे रात भर, खुद से बातें, भगवान् से बातें, नींद कहाँ थी आखों में. कभी सोचती कि मैं इतनी खुशकिस्मत कहाँ कि मेरा रिजल्ट भी गलती से छपने से रह गया हो. आज तो रात भी कितनी लम्बी थी. पूरी रात बेसब्री से गुज़री. सुबह सुबह फिर अखबार खरीद लाई,पर उफ़! आज अखबार में रिजल्ट छपा ही नहीं था. बेसब्री से तैयार हो, कम्प्यूटर सेण्टर जाने लगी तो कई और लोगों नें भी अपना परिणाम जानने के लिए अपने रोल नबर थमा दिए.

कम्प्यूटर खोला, तो सर्वर डाउन, वो तो १० बजे ही औन होता है, बैचैनी बड़ती जा रही थी, आखिर नैट भी कनेक्ट हो गया, साईट भी खुल गयी. अब हिम्मत ही नहीं हो रही थी अपना नंबर फीड करने की, कहीं नहीं आया तो.... फिर उसने पहले एक एक कर सब सहेलियों के रोलनंबर डाले, पर एक दो तीन चार पूरी आठ सहेलियों का नहीं हुआ.....अब आख़िरी नंबर ही बचा था उसके हाथ में, उसका अपना रोल नंबर, जैसे ही फीड किया... स्क्रीन पर बड़ा सा कांग्रेचुलेशन लिखा आ गया. अरे! ये क्यों हो रहा है, मैंने नंबर तो ठीक डाला है न, एक बार फिर डाला, एक एक अक्षर देख कर डाला, फिर से वही स्क्रीन पर कांग्रेचुलेशन, उसे यकीन नहीं हुआ कि उसने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है, वो खुशी से कांप उठी, पूरे बदन में रोंगटे खड़े करने वाली सिहरन, होठों से शब्द नहीं निकल रहे, कुछ समझ  नहीं आ रहा था, यहाँ तक कि कम्प्यूटर कैसे बंद करते हैं यह भी समझ नहीं आ रहा था , हाथ पैर कांप रहे थे, आनंदातिरेक से, और आँखों से आंसू बह रहे थे.....

वो बाहर निकली तभी उसकी सबसे प्रिय सहेली इति मिली, वो उसके गले लग कर रोने लगी. इति घबरा गयी कि देवारती रो क्यों रही है, पर वो तो खुश थी, आज उसने पहली बार जाना था कि खुशी के आंसू होते कैसे हैं....

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 9:46pm

जी हाँ आंसू खुशी के बस ऐसे ही होते हैं. बहुत सुन्दर जीवंत दृश्य प्रस्तुत करती लघुकथा पर सादर बधाई स्वीकारें आद. डॉ. प्राची जी.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 14, 2012 at 3:54pm

aadarniyaa praachii ji, saadar 

bilkul सही चित्रण किया है. मनोदशा का .

बधाई. 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2012 at 11:55am

मनोस्थिति का बाखूबी से वर्णन किया है आपने बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2012 at 11:20am

लघुकथा में आशा निराशा की कश्मकश पसंद करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी. मुझे भी शायद शाब्दिकता ही ज्यादा लग रही थी इस लघुकथा में , इसीलिये मैं भी संतुष्ट नहीं थी इस अभिव्यक्ति से (कहीं कहीं नीरसता आ रही था .. :-)) ). इसे थोडा कम करने का प्रयास किया है.

आदरणीय लतीफ़ खान जी की टिप्पणी वास्तव में मिसाल स्वरुप ही है. पूर्णतः सहमत हूँ. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2012 at 11:15am

आदरणीय वीनस जी, लघुकथा  के सार को एक दोहे में ढालने के लिऐ हार्दिक आभार. सादर.

Comment by वीनस केसरी on December 6, 2012 at 1:02am

मन चंचल उद्विग्न था, ना दिखती थी राह
देख परीक्षाफल हुआ,  तन मन में उत्साह


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 12:18am

आपकी लघुकथा का तानाबाना बेहतर बुना गया है जहाँ आस-निरास की मनोदशा का चित्रण हुआ है. कथ्य में शाब्दिकता थोड़ी कम होती. बधाई.

लतीफ़ खान साहब की विवेचना मुग्ध करने वाली है. आपकी इस रचना पर लतीफ़ ख़ान साहब की टिप्पणी उन युवकों के लिए मिसाल होनी चाहिए जो तथ्यपरक टिप्पणी करने में असक्षम हैं, चाहे वे बहाना जो दें. बस वाहवाह कर निकल लेते हैं या वाहवाह भर सुनना चाहते हैं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 5, 2012 at 8:09pm

आदरणीय लतीफ़ खान जी आपने बहुत खूबसूरत शब्दों में विवेचना की इस अभिव्यक्ति की...

हर इक आंसूं को  पीडाओं का विज्ञापन मत कहिये ,,,

औ मुस्कानों को भी खुशियों का सत्यापन मत कहिये...वाह ! बिलकुल सच कहा.

हार्दिक आभार आपका आदरणीय 

Comment by लतीफ़ ख़ान on December 5, 2012 at 8:01pm

आदरणीया  डॉ  प्राची  साहिबा ,,,  ग़म और खुशी की लहरों पर डूबती उतराती नैया को जब खुशियों का किनारा मिल जाता है तब आँखों से बहते आँसुओं की क़ीमत वही जान सकता है जिस के दिल पर गुज़रती है ,,, ग़म और खुशी के बीच की क़श्मक़श को दर्शाती यह लघु कथा सचमुच काबिले-तारीफ़ है ,,, हर इक आंसूं को  पीडाओं का विज्ञापन मत कहिये ,,,औ मुस्कानों को भी खुशियों का सत्यापन मत कहिये ,,, तहे-दिल से मुबारक बाद ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 5, 2012 at 6:19pm

इस अभिव्यक्ति को पसंद करने के लिए आदरणीया राजेश जी, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आदरणीय अरुण कुमार जी, प्रिय पियूष जी, प्रिय कुमार गौरव जी आप सबका हार्दिक आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service