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लूट व् भ्रष्टाचार से, भरा पड़ा अखबार,
ह्त्या, बलात्कार से, ख़बरों की भरमार ।
 
घोटालों की भरमार, जनता को सब भान
जाँच करा लिपापोती, सरकार की ये शान ।
 
सुर्खियों में रहना ही, नेता समझे शान,
चर्चा में हरदम रहे,  नेता उसको जान  । 
 
खबर गर है मजेदार,सच की क्या दरकार
संस्कृति व साहित्य से, कहाँ अब सरोकार ।
 
जनहित सोंच खबर छपे, इसकी ही दरकार,   
जनजन को चेतन करे,वह असली अखबार ।
 
जनता में जागृति भरे, खबर सजग करजाय, 
जनसत्ता को सजग करे, चौथा स्तम्भ बताय ।
 
जनहित में खबरे छपे, इसकी ही दरकार,   
जनजन को चेतन करे,वह असली अखबार ।
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला  

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 3, 2012 at 9:46am

रचना के भाव पसंद करने के लिए आपका आभार भाई श्री वीनस केसरी जी 

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2012 at 12:10am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 12:00pm

 रचना के भाव पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार श्री अरुण शर्मा 'अनंत' जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 11:57am

डॉ प्राची जी, दोहे लिखने के विच्दर से ही प्रयास किया था पर बैठ नहीं पा रहे थे । रचना के भाव पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 11:51am

आपका सुझाव अच्छा लगा घोटालों की भरमार ज्यादा ठीक रहेगा । तो पंक्तियों के माध्यम से आपकी 

सामयिक प्रतिक्रिया ने तो चार चाँद लगा दिए, हार्दिक आभार स्वीकारे 
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 11:49am

आदरणीय सर आज के अख़बारों की दशा का बहुत ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया है बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 1, 2012 at 7:55pm

आदरणीय लक्ष्मण जी,

इस रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं.

लेकिन यदि आपने यह दोहा मान कर लिखे हैं तो यह दोहे बिलकुल नहीं हैं...

सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 1, 2012 at 7:43pm

आदरणीय लड़ीवाला जी 

                    सादर प्रणाम, सामयिक विषय पर आपने बहुत सुन्दर दोहे लिखे हैं एक दो जगह मात्रा कम लगी.मगर दोहे अपने उद्देश्य को सार्थक कर रहे हैं.सादर.

घोटालो की करतार,  जनता को भी भान             

जांच कर लीपापोती,  घोटाले की   शान ।
इस दोहे में करतार कि जगह भरमार कर दें तो कैसा रहेगा.

सम्पादक बैठे दुई, मांगे एक करोड,

पत्रकारिता भी मुई,लागत है बेजोड/ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2012 at 4:36pm

रचना के भावों को पसंद कर उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार भाई श्री संदीप कुमार पटेल जी 

आपने टंकण त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाकर लेखक धर्म निभाया है, उसके लिए भी धन्यवाद ।

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2012 at 4:13pm

रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आपका शालिनी कौशिक जी 

कृपया ध्यान दे...

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