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ऐसा वरदान हम को ईश्वर दे

                                                      ग़ज़ल 

                                                   [1]    ऐसा  वरदान  हम  को  ईश्वर  दे  ! 
                                                           झोलियाँ  सब की  प्यार  भर  दे  !
                                                   [2]    हो गणेशाय नमः से जो आरम्भ  ,  
                                                           ऐसे  कर्मो का फल भी सुन्दर  दे  !
                                                   [3]    देश  को  श्री  गणेश  "बाग़ी" सा  ,
                                                           शब्द-शिल्पी  दे ,  इंजिनियर  दे  !
                                                   [4]    जब "प्रभाकर" उदय हो"प्राची" से ,
                                                           आभामय  "अम्बरीष"  अम्बर दे  !
                                                   [5]    काव्य "सौरभ" लुटाये जग में जो .
                                                           उन को  सम्मान  और आदर  दे  !
                                                   [6]    ये  हैं  "राणा प्रताप", "धरमेन्दर" ,
                                                           इन  को    नामानुरूप   तेवर  दे  !
                                                   [7]    धन्य  "अविनाश बागडे"  भी  हैं  ,
                                                           दाद मन से जो सबको मन भर दे! 
                                                   [8]    चाहे "राजेश"  हों  या "सीमा" जी,
                                                           पुष्प  रूपा   हैं  फूलों   के   वर दे !  
                                                   [9]    जब हो"संजय","सतीश"का लेखन ,
                                                           उस में ओजस्विता के गुण भर दे !
                                                  [10]   हों चरणचिन्ह इनके जिस पथ पर,
                                                           पथ  वही  मुझ को  मेरे   ईश्वर  दे !
                                                  [11]   हम हों  सब के दुखों  में सहभागी ,
                                                           मन  में   इतनी  सहिष्णुता भर दे !
                                                  [12]   हम भी  गन्तव्य  तक पहुँच जाएँ ,
                                                           हम  को ऐसा  "लतीफ़"  सहचर दे !       
                                                                                             लतीफ़ खान,, दल्ली राजहरा,,

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 8:33pm

लतीफ़ भाई मंच के सम्मानित सदस्यों के प्रति आपके ये उद्गार काबिले तारीफ हैं। ईश्वर आपकी लेखनी को ऐसे ही बनाए रखे और आप अपने सुख़न से आदाब की खिदमत करते रहें! 

बहुत बहुत बधाइयाँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 3:14pm

आदरणीय लतीफ़ जी आपने जो सबको एक एक मोती की तरह  एक ग़ज़ल सूत्र में पिरोया है आप भी उस ग़ज़ल का एक नायाब मोती हैं आपका इस मंच और इससे जुड़े सदस्यों के प्रति आपका प्रेम इस ग़ज़ल में उभर कर  आया है इतना मान देने के लिए दिल से आभारी हूँ स्नेह बनाए रखियेगा 

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 12:21pm

आभार आदरणीय -

कुत्सित कलुषित कलेजे पावन हों-
उज्जल प्राचुर्य प्रांजल 'रवि-कर' दे |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 11:59am

आदरणीय लतीफ़ खान जी 

मंच के प्रति और सभी सदस्यों के प्रति अपने स्नेह भावों को बहुत सुन्दर ग़ज़ल में  अभिव्यक्त किया है आपने. इस स्नेह हेतु आपका आभार.

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2012 at 12:04am

वाह !
लतीफ़ साहिब
आपने तो कमाल कर दिया

हार्दिक बधाई एवं शुभकामना

Comment by UMASHANKER MISHRA on December 2, 2012 at 10:56pm

जय हो  लतीफ़ भाई 

आपने ओ.बी.ओ.के प्रभामंडल में प्रकाशित रश्मियों को विकरित(प्रकाश को फैलाना ) कर दिया है 

आपका ये सम्मान वाजिब है आप भी इस प्रभामंडल के चमकते सितारे से कम नहीं 

आप राजहरा से हैं आप से मिलने और गजल के गुर समझने की तमन्ना है ..राजहरा जैसे क्षेत्र में बिजली नेट जैसी समस्या आम है एसी कठिन परिस्थितियों से जूझ कर आप यहाँ सम्ल्लित होतें है ये बहुत बड़ी बात है 

मुसयारे में आप की गजल को पढ़ा परन्तु व्यक्तिगत कारणों से प्रतिक्रिया नहीं दे पाया 

आपके  गजल लाजवाब रहते हैं 

हमें आप पर फक्र होता है 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 2:19pm
शेर दर शेर है तारीफे काबिल, 
मन लतीफ़ को शुक्रिया कर दे ।  
Comment by shalini kaushik on December 2, 2012 at 1:37pm
हों चरणचिन्ह इनके जिस पथ पर,
पथ वही मुझ को मेरे ईश्वर दे !
nice
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 11:42am

आदरणीय खान साहब वाह बड़ी ही खूबसूरती के साथ एक ही ग़ज़ल में  इतने सारे चमचमाते तारों को सजा दिया।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 2, 2012 at 1:10am

जोड़ रक्खा है आपने सबको,

कौन अब आपको ये ब्रेकर दे;

हम नहीं इन से सूरमाओं में,

मन में इस कोई ज्ञान ही भर दे;

सादर लतीफ़ भाई साहिब...

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