For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा- 'दिल' और 'दिमाग'

बहुत पहले 'दिल' और 'दिमाग' अच्छे दोस्त हुआ करते थे। उनका उठना-बैठना, देखना-सुनना, सोचना-समझना और फैसले लेना, सब कुछ साथ-साथ होता था।
फिर इक रोज़ यूँ हुआ कि 'दिल' को अपने जैसा ही एक हमख्याल 'दिल' मिला। दोनों ने एक दूसरे को देखा और देखते ही, धड़कनों की रफ़्तार बढ़ी सी मालूम हुई। मिलना-जुलना बढ़ा तो कुछ रोज़ में, दिलों की अदला-बदली भी हो गयी। अब एक दिल मचलता तो दूसरे की धड़कने भी तेज हो जातीं; एक रोता तो दूजे की धड़कने भी धीमे होने लगतीं। बस एक दिक्कत थी कि दोनों सही फैसले नहीं कर पाते थे। वज़्ह कि फैसले दिमाग लेता है और वो अब दिल से दूर हो चुका था। वैसे भी अगर आप, दो लोगों के बीच खड़े हों और अचानक से किसी एक की ओर रुख़ करके चलने लगें, तो दूसरा खुद-ब-खुद दूर हो ही जाएगा।
फिर एक रोज़ 'दिमाग', 'दिल' को समझाने लगा- "यूँ ही, बिला-वज़ह, किसी से दिल लगा लेना, ठीक नहीं। ख़ुद की परेशानियाँ ही क्या कम हैं, जो बेवज़ह दूसरे के लिए परेशान रहें..? दूसरों के लिए धड़का करें..? जब अपने ज़ज्बात ही नहीं संभाले जाते, तो फालतू में दूसरों के ज़ज्बात को क्यूँ ढोते फिरें..?" अब सोचना और समझना, दिल का काम तो है नहीं। आखिरकार आ ही गया, दिमाग की बातों में...। थोड़ा रो-धोकर अपने हमख्याल दिल को भी छोड़ ही दिया। पर अब वो 'दिल' नहीं रह गया था। 'दिमाग' में तब्दील हो चुका था।

(चित्र- गूगल से साभार)

Views: 1032

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seema agrawal on December 1, 2012 at 12:46pm

दिल-दिमाग ,दिमाग दिल बढ़िया .....बहुत बढ़िया कथा 

//दिलों की अदला-बदली भी हो गयी।// सवाल ये है विवेक भाई की दिमाग ने आखिर किसके दिल से बात की :))

Comment by विवेक मिश्र on November 28, 2012 at 12:38am

हार्दिक आभार शालिनी जी.

Comment by shalini kaushik on November 28, 2012 at 12:29am

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति   .बधाई 

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:55pm

लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाला जी- इस दिमागी कसरत को पसंद करने के लिए आभार आदरणीय.

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:51pm

रविकर जी- सराहना के लिए धन्यवाद आदरणीय.

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:50pm

बागी भाई- वैसे तो लिखने की कोशिश दिल से ही हुई थी (सुबह ४ बजे तक), पर यदि परिणाम 'गुड़मुड़ गुड़मुड़ गुडुप' हुआ तो इसमें दोष लेखक का ही है. तथापि प्रयास जारी है. :-)
जय हो !!!

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:44pm

सौरभ सर- ओबीओ पर कोई भी रचना आपकी टिप्पणी से पूर्ण होती है. अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार.

"ऐ महाराज.. दिलवा अभी ले ता संगही बा. बाकी, कब ले रही, एकर गारण्टी नइखे. :-)))"

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:26pm

डॉ.प्राची जी- रचना में उलझने के लिए धन्यवाद. :)

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2012 at 7:10pm

दिल और दिमाग के मध्य वार्ता की अच्छी कसरत की है, बधाई 

Comment by रविकर on November 27, 2012 at 4:52pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय ।

बधाई स्वीकारें ।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service