For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : आ मेरे पास तेरे लब पे जहर बाकी है

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२ 

रह गया ठूँठ, कहाँ अब वो शजर बाकी है

अब तो शोलों को ही होनी ये खबर बाकी है

है चुभन तेज बड़ी, रो नहीं सकता फिर भी

मेरी आँखों में कहीं रेत का घर बाकी है

रात कुछ ओस क्या मरुथल में गिरी, अब दिन भर

आँधियाँ आग की कहती हैं कसर बाकी है

तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया

पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है

तू कहीं खुद भी न मर जाए सनम चाट इसे

आ मेरे पास तेरे लब पे जहर बाकी है

Views: 1000

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 15, 2012 at 1:46am

धर्मेंद्र भाई ग़ज़ब की ग़ज़ल काही है आपने। बहुत उम्दा शेर निकाले हैं...खास कर इस शेर ने तो कमाल ही कर दिया....

तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया

पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है...माशाल्लाह 

दाद कुबूल करें !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2012 at 4:31pm

अच्छा है.. . मिल-बाँट कर लिखें-सुनें-कहें.. 

वर्ना ’मैंने लिखा-पढ़ा-कहा’ का अक्सर गुरूर आ जाता है.


:-)))))))

Comment by वीनस केसरी on November 14, 2012 at 4:25pm

आपका ही है हुज़ूर ...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 14, 2012 at 4:20pm

वीनस जी, ये शे’र हमका दे दीजिए। वरना....
बहुत बहुत शुक्रिया मित्र

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 14, 2012 at 4:19pm

आदरणीय सौरभ जी, आपका यही दुलार तो लिखवाता है वरना हम क्या, कलम क्या।
बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 14, 2012 at 4:18pm

इमरान खान जी, शुक्रिया हुजूर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 14, 2012 at 4:18pm

लक्ष्मण प्रसाद जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 14, 2012 at 4:17pm

फूल सिंह जी, बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on November 14, 2012 at 2:19pm

वाह क्या कहने भाई
वाह वाह
यह शेर हासिले ग़ज़ल लगा

तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया

पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है


खाकसार का एक फिल्बदी शेर गौर फरमाएं

किसी दिन मैं भी बगावत पर उतर आऊँगा 
अभी मुझ पर तेरी बातों का सहर* बाकी है
* जादू


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2012 at 11:36am

मतला वाह ! कैसे ऐसा सोच लेते हो, धर्मेन्द्र भाई ? ईर्ष्या भी होती है, दुलार भी आता है. ग़ज़ब किया है आपने इस मतले में.

तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया
पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है .... ........    निसार !  ओह्होह ! ..  ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब !

आखिरी शेर के सानी पर तो एकदम ही मार दिया.. .  अब क्या बधाई-दाद दूँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service