For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो

एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -

वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो | 
ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |

दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |
मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |

मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,
पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |

शराफत का तकाज़ा तो यही है,
रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |

करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे मैं,
दिया अपना जो उसने वास्ता तो |

रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो |

रकीबों में वो गिनता है मुझे और,
  गले भी लग गया मुझसे मिला तो |

वो रहमत कर रहे हैं सिर्फ मुझ पर, 
कहीं दिल कहर ढाने का हुआ तो |

हमें बस शायरी का शौक है, पर, 
यही इक शौक भारी पड़ गया तो |

वो मानेगा मेरी बातें, ये सच है,
करेगा दिल की ही ज़िद पर अड़ा तो |

जरूरत से जियादः टोकते हैं,
कोई दिखला गया गर आईना तो |

लगा रहता है मुझको डर बराबर
मेरा हर शे'र उनको भा गया तो |


खुले हो जिस तरह तुम उनसे 'वीनस',
अचानक तोड़ लें वह राबिता तो |

बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |

Views: 900

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on November 26, 2012 at 2:00pm

चन्द्रेश जी शेअर को पसंद करने और प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रगुजार हूँ

Comment by वीनस केसरी on November 26, 2012 at 1:59pm

राज साहब आभार

Comment by वीनस केसरी on November 26, 2012 at 1:59pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी ह्रदय से आभारी हूँ

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:30pm

बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस', 
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |

वाह बहुत खूब !!

Comment by राज़ नवादवी on October 26, 2012 at 3:06pm
धनवाद भाई वीनस जी जो आपने अपने इल्मओइस्लाह से हमें नवाज़ा. बात सच कही आपने, किसी चीज़ की आशिकी ही उसे मकम्मिल तौर पे दस्तयाब कराती है, जुनूं ओ दीवानगी के बगैर मजनूँ नहीं पैदा हुआ करते! सो आजकल बह्र की लैला का मजनूं बना फिरता हूँ. हा हा हा हा ! सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 26, 2012 at 9:37am

रकीबों में वो गिनता है मुझे और, 
  गले भी लग गया मुझसे मिला तो | 

बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस', 
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |------बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी वीनस जी मजा आ गया पढ़ कर हर शेर जानदार है और ये तो बहुत बहुत पसंद आये ढेरों दाद कबूल करें 

 

 

Comment by वीनस केसरी on October 26, 2012 at 12:12am

सौरभ जी, अनिल जी, डॉ. प्राची जी, संदीप जी, और गणेश जी

आप सभी को हृदल तल से धन्यवाद

ग़ज़ल को पसंद किया इससे निश्चित ही मेरा हौसला बढ़ा है उत्साहित हुआ हूँ कुछ और कह सकने को ...
सादर

Comment by shalini kaushik on October 25, 2012 at 9:13pm

बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस', 
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |

nice expression 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 7:55pm

वाह भाई वीनस वाह, क्या बात है, मतला , हुस्ने मतला और दो मक्ता, एक को हुस्ने मक्ता कहूँ तो ....

//रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो |//

इस शेर पर लख लख बधाई, खुबसूरत ग़ज़ल है भाई, इस अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |

Comment by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 10:18pm

राज साहब,
बहर तो आपने खूब पहचानी और जो हाले दिल आपने बयान किया है यह तो सभी के साथ हो कर गुज़रता है
बिलकुल वैसे ही जैसे ताज़ा ताज़ा इश्क का मुआमला हो तो आशिक को हर तरफ माशूक ही दिखता है :))))

बैसे बहर के नाम में मुसम्मन नहीं लगेगा क्योकि यह तब लगता है जब अरकान में ४ रुक्न हों यहाँ तीन हैं इसलिए मुसद्दस लिखेंगे और एक जिहाफ भी है जो "मुफाईलुन" को "फ़ऊलुन" करता है जिसका नाम "महजूफ़" है 
तो बहर का नाम हुआ = "हजज मुसद्दस महजूफ़"

ग़ज़ल को अपने पसंद किया इसके लिए शुक्रगुजार हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service