For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निकिता की शादी हो रही थी| सभी बेहद खुश थे| सारा इंतजाम राजसी था| होता भी क्यों न? निकिता और उसका होनेवाला पति, दोनों ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ऊँचे ओहदों पर थे और अच्छे घरों से आते थे| वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान भाई के द्वारा की जानेवाली रस्मों की बारी आई| अब भाई की रस्में करे कौन? निकिता का इकलौता भाई, जो इंजीनियरिंग का छात्र था, परीक्षाएँ पड़ जाने के कारण अपनी दीदी की शादी में आ ही नहीं पाया था| लेकिन इससे कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि राज्य के नामी उद्योगपति आर.के सिंहानिया का बेटा और निकिता का मुंहबोला भाई विक्रम सिंहानिया वहां मौजूद था अतः निकिता के माता-पिता ने झट से उसे आगे कर दिया और सबकुछ पुनः सुचारू रूप से चलने लगा|

लावा छिंटाई की रस्म चल रही थी और लोग बातें कर रहे थे - "देखो तो, बिल्कुल अपने भाई की तरह मानती है इसे"| कोई कह रहा था - "अरे पिछले साल राखी बंधाई में इसने निकिता को हीरे की घडी गिफ्ट की थी"| रस्में होती रहीं, लोग आज के युग में मुंहबोले भाई-बहन के इस प्रेम की मिसाल देते रहे| इस सबके बीच गाँव से आया हुआ निकिता का अपना बेरोजगार ममेरा भाई, जिसके घर में निकिता का बचपन बीता था, भीड़ में उपेक्षित बैठा चुपचाप एकटक से शादी में भाई द्वारा हो रही रस्मों को देख रहा था|

Views: 865

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 3, 2012 at 7:55am


आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी........कहानी को सराहने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.........कई अवसरों पर सचमुच मन ये सोचने के लिए विवश हो जाता है कि क्या आज रिश्ते प्रेम से होते हैं या स्वार्थ से.........संभवतः हर किसी को कभी न कभी ऐसा महसूस हुआ ही होगा.......इसी को दर्शाने का ये मेरा एक प्रयास है........आपकी सराहना ने उत्साह बढ़ाया है........एक बार पुनः धन्यवाद..........

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 3, 2012 at 7:08am

इस स्वार्थी समाज का वास्तविक चेहरा दर्शाती हुई इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई अनुज !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 3, 2012 at 6:56am

कहानी को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय रक्ताले सर............

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2012 at 3:39pm

भौतिक युग और रिश्तों के तौल को दर्शाती सुन्दर लघुकथा. बधाई.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 25, 2012 at 8:09am

मित्रवर विशाल जी.......आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.......आपको कहानी पसंद आई.........आज की अंधी भागदौड़ वाली जीवनशैली में शायद रिश्ते कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं.......दुनिया मतलबी होती जा रही है..........इसी बात को मैंने इस कहानी के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है......आपने सराहा..........आपका आभार......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 25, 2012 at 7:57am

आदरणीया सीमा जी.......आपकी बात से मैं सहमत हूँ......दुनिया में आज भी ऐसे लोग हैं जो रिश्तों को निभाने में विश्वास रखते हैं.........जिनकी आँखों में पानी होता है.......किन्तु ऐसे भी कम नहीं जो रिश्तों को पहले हैसियत के तराजू पर तौलते हैं फिर आगे फैसला लेते हैं.......मैंने ये कहानी किसी एक घटना से आहत होकर नहीं लिखी बल्कि समाज में घट रही ऐसी अनेक घटनाओं को देखने के बाद ऐसी मतलबी मानसिकता का एक नमूना दिखाने के उद्देश्य से लिखी है........सार्थक एवं सहमतिपूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार.........

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 25, 2012 at 12:37am

भारतीय परम्पराओं के आंचल के नीचे के एक घाव को - एक दर्द को बखूबी उभारा है आपने.......बडी ही सहजता से कर गये बयान उस बेबस और लाचार दिल की बात जो बहुत से लोगों को तो दिखता ही नहीं बयान तो बहुत दूर की बात है.........!!!!

Comment by seema agrawal on September 24, 2012 at 10:23am

समाज को आइना दिखती  तस्वीर ...लेकिन साथ ही ये भी कहूंगी कि यह  सिर्फ एक पहलू है जो आपने स्वयं अनुभव किया  और आप को चुभा इसलिए शब्दों में परिवर्तित हुआ 
इसका एक विपरीत पहलू भी मैंने देखा है इसलिए मै आपसे  सहमती रखते हुए भी निराश नहीं हूँ ......शुभकामनाएँ गौरव जी 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 24, 2012 at 9:37am

आदरणीया रेखा जी........कहानी को पसंद करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........ये कहानी आज के मशीनी युग की मानसिकता को दर्शाने का मेरा एक प्रयास है......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 24, 2012 at 9:34am

आदरणीय गुरुदेव.........बिल्कुल सटीक शब्दों में आपने इस कहानी की भावना को संतुष्ट करती प्रतिक्रिया दी है.....दुनिया आज सम्बन्ध नहीं बल्कि हैसियत देखने लगी है.....और उसी हिसाब से नये रिश्ते बनाये और पुराने तोड़े जाते हैं.....ये कहानी भी आज की इसी नयी मानसिकता को दर्शाने का एक प्रयास मात्र है.......सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिये आभार...........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
6 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service