For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं;
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; (१)

फिर कहानी सुनाओ वही मुझको माँ,
चाँद की रौशनी, बादलों की ज़मीं; (२)

वक़्त की मार ने सब भुला ही दिया,
आसमां ख़ाब का, हसरतों की ज़मीं; (३)

जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४)

दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी,
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५)

गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी,
बन गई आज ये असलहों की ज़मीं; (६)

क्या बताऊँ मैं 'वाहिद' तमन्ना कोई,
अब तलक दूर है मन्नतों की ज़मीं; (७)

Views: 917

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 2, 2012 at 8:47pm

प्रशंसा हेतु धन्यवाद राजीव जी !

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 2, 2012 at 8:47pm

आदरणीया सीमा जी,

बहुत देर से लौटा हूँ करबद्ध हूँ! आप जैसी विदुषी से प्रशंसा के कुछ बोल पुरस्कार के समान हैं! आपके दो शे'र निस्संदेह मेरे कथ्य को अत्यंत उत्कृष्ट ढंग से संप्रेषित कर रहे हैं! विनयावनत,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 2, 2012 at 8:43pm

महिमा जी हार्दिक धन्यवाद आपका! विलंबित उत्तर हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ!

Comment by Rajeev Mishra on September 20, 2012 at 10:48pm

निशब्द !

Comment by seema agrawal on September 11, 2012 at 3:10pm

बहुत मुश्किल में  पड़ गयी मै तो देर से पहुँच कर कि अब क्या बोलूँ इतनी तारीफ़ तो पहले ही हो चुकी है किसी भी शेर को पढ़ो लगता है यही बेस्ट है ...मतलब पहले शेर से लेकर अंतिम शेर तक सभी बेस्ट 

ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं; 
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; .....बहुत मासूम सी बात 

जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ, 
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; ..............वाह बहुत खूब संदीप जी

....................................................सडकें बनती रहीं गाँव खोते रहे 

....................................................यूँ तरक्की के हम बीज बोते रहे 

दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी, .............अर्श पा तो लिए कामयाबी के ,पर 

है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं;..........चैन के फर्श आंसू से धोते रहे 

चलिए आपके बहाने मैने  भी दो शेर कह लिए 

दिली मुबारकबाद इस खूबसूरत गज़ल के लिए 

Comment by MAHIMA SHREE on September 11, 2012 at 1:14pm

जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ, 
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४) 

दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी, 
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५) 

गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी, 
बन गई आज ये असलहों की ज़मीं; (६)

 वाह !!! क्या बात है आदरणीय वाहिद साहब .. बहुत ही बढियां ...बधाई आपको .. 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 8, 2012 at 11:03am

आदरणीया सरिता जी,

एक लंबे अंतराल के पश्चात आपकी प्रोत्साहनयुक्त प्रतिक्रिया पा कर हार्दिक प्रसन्नता हो रही है! साभार,

Comment by Sarita Sinha on September 7, 2012 at 7:52pm

आसमां की तलाश में जाने कब,

हो गयी गुम पैरों तले की ज़मीं ............
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 4, 2012 at 12:59pm

आदरणीय अशोक जी,

आपकी सराहना और प्रशंसा के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 4, 2012 at 12:58pm

अब क्या कहूँ संदीप जी आपने तो निरुत्तर कर दिया! आभार,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service