For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किस्मत ने हमको रोका, कहा ! मुसुकुराए क्यूँ हो 
हारे हो तुम तो मुझसे लेकिन हराए क्यूँ हो
इतना तो तुमसे सीखा , कभी यूँ न डगमगाना 
कैसी भी  हो डगर पर , सदा तुम सा मुस्कुराना 
_________________________________________
आगोश में हमारे , आना मगर संभलना 
जुल्फों से खेलें हम भी , बूंदों सा तुम बरसना 
देखो तो देखो ऐसे ,  जैसे धरती निहारे बादल 
बस जाऊं तेरे दिल में , जैसे आँखों के बीच काजल 
_________________________________________
मुझे खुद पता नहीं है , हम कब थे मुस्कुराये 
गम की खुमारी मुझमे , बस खैरात में समाये  
तेरा इन्तजार मुझको , सदियों से खा रहा है 
हर बार तुम गए जब , मेरे जाने के बाद आये 
_________________________________________
मुझे खुद पता नहीं है , तेरी तलाश क्यूँ है
जंगल की आग जैसे , बिखरी पलाश क्यूँ है 
एक अजब सी हलचल , जब जब हिलोरें लेती 
हर बार सोचता मैं , मुझे तुमसे प्यार क्यूँ है 
_________________________________________
गलियां वही हैं ठहरी , जहा हम मिले थे तुमसे 
छिप  जाते थे हमेशा, आहट पे हर किसी से 
तेरे इश्क की गली अब जाने को कह रही है   
न सवाल अब बचे है , न बचा गिला है तुमसे 
 _________________________________________
कभी वो बात ये समझे की  दिलबर वो हमारा था 
मैं थी उसकी ही सजनी और वो साजन भी हमारा था 
समझ जाता अगर मेरे इशारो को मेरा दिलबर 
कभी शिकवा नहीं करता ,न उसको फिर गिला  होता 
 
Ashish Srivastava( Sagar Sandhya )

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashish Srivastava on September 7, 2012 at 9:48pm

Aadreya laxman ji 

badahi ke liye aabhar , aur aapne mera sahas badakar sneh diya , dhanyawaad 

Comment by Ashish Srivastava on September 7, 2012 at 9:48pm

Aadreya ashok ji , 

badahi ke liye aabhart , aur aapne mera sahas badakar sneh diya , dhanyawaad 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 1:06pm
मुझे खुद पता नहीं है , हम कब थे मुस्कुराये 
गम की खुमारी मुझमे , बस खैरात में समाये  
तेरा इन्तजार मुझको , सदियों से खा रहा है 
हर बार तुम गए जब , मेरे जाने के बाद आये 
 बहुत बढ़िया मुक्तक आ. आशीष जी. बधाई स्वीकारें.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 3, 2012 at 2:25pm

आशीष जी इशारे समझे, न समझे, न उसकी शिकवा न उसको गिला कासी भी परिस्थिति हो सदैव मुस्कराना | बहुत सुन्दर छंद बधाई 

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service