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वर्षा के दो रूप (मदन छंद या रूपमाला पर मेरा पहला प्रयास )

(हर पंक्ति में २४ मात्राएँ ,१४ पर यति अंत में गुरु लघु (पताका) २१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२१   संशोधित मदन छंद )

घनन घन बरसे बदरिया ,झूमती हर  डाल|

भीगता आँचल धरा का  ,जिंदगी खुश हाल|   

प्यास फसलों की बुझी अब, आ गए त्यौहार- 

राग मेघ मल्हार सुन-सुन, हृदय झंकृत तार||

 

हैं बरसते घन घुमड़ कर, दामिनी दहलाय|  

चरमराकर वृक्ष गिरते, पत्र फट फट जाय|  

इक परिंदा देख रोए, कित गया  घर  बार- 

गाँव सब डूबे गले तक,   त्राहिमाम पुकार||

     ******

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Comment by rajesh kumari on July 25, 2012 at 8:57am

अम्बरीश जी हार्दिक आभार रास्ता दिखाने के लिए इन छंदों में फिर से सुधार करके पोस्ट करुँगी |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 1:29am

आदरेया राजेश कुमारी जी, रूपमाला छंद रचने के सुंदर से प्रयास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें !

यदि हम  मदन/रूपमाला छंद की बंदिश पर ध्यान दें तो यह तथ्य उभर कर आता है कि इसकी बंदिश निम्न प्रकार से है ………….

‘राजभा’गा ‘राजभा’गा, ‘राजभा’गा राज

212 2        2122         2122       21

अर्थात रगण+गुरु x ३ + पताका(गुरुलघु)  

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