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तीन कह-मुकरियाँ

(एक अभिनव प्रयोग)

 

खुसरो की बेटी कहलाये

भारतेंदु संग रास रचाये

कविजन सारे जिसके प्रहरी

क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!

 

बांच जिसे जियरा हरषाये

सोलह मात्रा छंद सुहाये

पुलकित नयना बरसे बदरी

क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!

 

चैन चुराये दिल को भाये 

चिर-आनंदित जो कर जाये

मन की कहती फिर भी मुकरी!

क्या वह सजनी? नहिं कह-मुकरी!

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 19, 2012 at 9:32am

 

अधरों पर मुस्कान जगाए 
गुप-चुप दिल के भेद बताए
है वो एक रहस्मय खबरी!
क्या सखी सजना? न न कह-मुकरी! 
इतनी सुन्दर, कह-मुकरी विधा का उद्भव, शिल्प, मूल तत्व कहती कह-मुकरियों के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तव जी.
Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 9:09am

धन्यवाद राजेश कुमारी जी ! सराहना के लिए हार्दिक आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 19, 2012 at 8:18am

अतिसुन्दर ,अतिसुन्दर अम्बरीश जी बहुत मनमोहक प्रयोग जानकारी भी उपलब्ध कराते हुए 

कृपया ध्यान दे...

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