For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मृगनयनी कैसी तू नारी ??

मृगनयनी कैसी तू नारी ??
------------------------------
मृगनयनी कजरारे नैना मोरनी जैसी चाल
पुन्केशर से जुल्फ तुम्हारे तू पराग की खान
तितली सी इतराती फिरती सब को नाच नचाती
तू पतंग सी उड़े आसमाँ लहर लहर बल खाती
कभी पास में कभी दूर हो मन को है तरसाती
इसे जिताती उसे हराती जिन्हें 'काट' ना आती
कभी उलझ जाती हो ‘दो’ से महिमा तेरी न्यारी
पल छिन हंसती लहराती औंधे-मुंह गिर जाती
कटी पड़ी भी जंग कराती - दांव लगाती
'समरथ' के हाथों में पड़ के लुटती हंसती जाती
तो जीती तो भी जीती - हारे 'हार' है पाती
कभी सरल है कभी कठिन तू अजब पहेली 'भाती'
कोमल गात कभी किसलय सी छुई -मुई है लगती
कभी शेरनी कभी सर्पिणी कभी दामिनी लगती
गोरी कलाई हरी चूड़ियाँ इंद्र-धनुष सी दिखती
रौद्र रूप धारण करती तो बनी कालिका फिरती
ज्योति पुंज है तू लक्ष्मी है सब के दिल की जान है तू
कभी मेनका कभी अप्सरा ऋषि मुनि का अभिशाप है तू
तो वीणा है सुर-लहरी तू मन का रस ‘आलाप’ है तू
तू माया है बड़ी मोहिनी एक भंवर जंजाल है तू
तू नैया है कभी खिवैया पार करे पतवार है तू
तू उलझन है कर्कश लहरें प्रलय बड़ी तूफ़ान है तू
तू गुलाब है बेला जूही रात की रानी कली चमेली
नागफनी है काँटा है तू बेल है तू विष-कन्या सी
पावन है तू गीता है तू सीता सावित्री गंगा धारा
काम-सूत्र है तू मदांध है बड़ी स्वार्थी विष की धारा
मधुर चांदनी मधु-मास है तू वसंत है प्रेम की खान
कृष्ण पक्ष है बड़ी मंथरा बनी पूतना होती 'काल'
तू चरित्र है या कलंक है प्रेम विरह में 'भ्रमर' घूमते चक्कर खाते
अगणित अद्भुत रूप तुम्हारे जान बूझ भी 'पर' कटवाते
अमृत-कुण्ड नहा लेते कुछ मैली-सरिता -'सभी' डुबाते
कीट-पतंगों सा जल-जल भी मरते दम तक कुछ मंडराते
ये प्रेम बड़ी है अद्भुत माया जो पाया वो सभी लुटाया
नींद गंवाता चैन गंवाता सब कुछ हारे सब कुछ पाता
इस जीवन सी गजब पहेली संग संग विचरे बनी सहेली
आओ जी भर प्यार करें हम डूब के पा लें सारे मोती
बड़ी सुनहरी सपना है तू सीपी है तू सात जनम की साथी
चकाचौंध है तू मेला है पल छिन की बाराती
सुन्दर कानन कल्प वृक्ष तू जीवन दाई हरियाली
तू उचाट है वंजर है तू कभी उगा- खा जाती
प्रेम ग्रन्थ आओ पढ़ पढ़ के कुछ गुत्थी सुलझाएं
मरें मिटें दीवाने चाहे प्रेम 'अमर' हो जाए
-------------------------------------------------------------
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
१.३०-२.२० मध्याह्न
फतेहपुर - कुल्लू हिमाचल रास्ते में वाहन में
२८.०२.२०१२


Views: 1201

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 14, 2012 at 12:01am

सुरेन्द्र भाई नमस्कार ! भाओं की धार में बहते बहते बहुत दूर निकल गए हुए लगते हैं....नारी के विभिन्न रूप और आयामों का अच्छा चित्रण किया है आपने।  बहुत बहुत बधाई !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 6, 2012 at 12:04am

बहुत सुन्दर और स्पष्ट शब्दों में आप ने चेताया आभार आप का आदरणीय सौरभ जी  ....वक्त मिले और दिया जा सके तो रचना प्रभावी बनती है जान रहा हूँ ..लेकिन काश मै इस तरह से शामिल हो पाता न जाने कब वो दिन आएगा .....

भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण  

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2012 at 11:57pm

आपकी आत्मस्वीकृति रोचक है. पर यह भी उतना ही स्पष्ट है कि रचनाकर्म एक गहन और समर्पण मांगती प्रक्रिया है, नकि चलताऊ रंजन. 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:43pm

कुछ बिम्ब पुराने हैं जिनसे बचा जा सकता था.  औचित्य स्पष्ट हो तो नये बिम्ब स्वयं बिखरे आते हैं.  या पुराने बिंब नये आयाम को इंगित करते हैं. ..

आदरणीय और सम्माननीय सौरभ जी आप के शब्द और समीक्षा भी हृदयग्राही हैं ...सुझाव अच्छा है आप का ..समयाभाव वश और अति शीघ्रता में लिख जाता हूँ रचनाएं या ये कहिये ये खुद ही प्रकट हो जाती हैं अपने रूप में इस लिए आप सब की कसौटी पर कमजोर पड़ जाता हूँ आगे से कुछ ध्यान शायद रख सकूं अपना सुझाव कृपया देते रहिएगा 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:39pm

प्रिय उमाशंकर मिश्र जी बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन हेतु रचना नारी के रूपों के कल्पना से उजागर कर सकी लिखना सार्थक रहा 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:38pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडली वाला जी बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया इतना समय आप ने दिया रचना को मान दिया बड़ी ख़ुशी हुयी राजस्थान का तो नहीं हूँ पर रहा जरुर हूँ आप के यहाँ सवाई माधो पुर और जयपुर में ...विचरण कई स्थानों पर किया हूँ आप का आशीष मिलता रहे मन भ्रमर का खिलता रहे 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:35pm

प्रिय और आदरणीय योगी जी ये तो आप की महानता है जो आप ने इस रचना और रचना कार को इतना मान दिया ..सच है गुरु जी कभी कभी आड़े टेढ़े राह में पहाड़ों में सर्पिनी आकार की सड़कों में जन्मी रचनाएँ मै खुद नहीं पढ़ पाता ऐसी बच्चे सी लिखावट ...आदत रही है जब जहां रचनाएँ जन्मी उनका नामकरण समय लिख देता हूँ 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:31pm

आदरणीया रेखा जोशी जी नारी के बिभिन्न रूपों को ये रचना दर्शा  सकी आप के मन को छू सकी सुन हर्ष हुआ 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2012 at 11:30pm

भ्रमरजी, आपकी रचना का विस्तार हृदयग्राही है.  कुछ बिम्ब पुराने हैं जिनसे बचा जा सकता था.  औचित्य स्पष्ट हो तो नये बिम्ब स्वयं बिखरे आते हैं.  या पुराने बिंब नये आयाम को इंगित करते हैं.

रचना प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद व बधाई.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:30pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी नारी के बिभिन्न रूपों को ये रचना दर्शा  सकी सुन ख़ुशी हुयी अपना प्रोत्साहन कृपया बनाये रखें 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह, हर शेर क्या ही कमाल का कथ्य शाब्दिक कर रहा है, आदरणीय नीलेश भाई. ंअतले ने ही मन मोह…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
11 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service