For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँखों से मौत के निशाने निकल पड़े


आँखों से मौत के निशाने निकल पड़े,
दिल पे चोट खाए दिवाने निकल पड़े,

बसती है तेरी चाहत सनम मेरी रूह में,
सूखे लबों की प्यास बुझाने निकल पड़े,

चाहतों के मामले फसानों में कैद है,
इल्जामों का पिटारा दिखाने निकल पड़े,

यादों का तेरे मौसम जब - जब आया है,
अश्को में बीते सारे ज़माने निकल पड़े,

होता है दर्द अक्सर तेरे बदले मिजाज़ से,
आज अपने साथ तुझको मिटाने निकल पड़े,

उल्फत की जिंदगी मैं जी-जी कर हारा हूँ,
समंदर में कश्तियाँ को बसाने निकल पड़े,

वो हंस-2 के मर गयी, मैं रो-रो के जी गया,
मेरे सीने में वफ़ा के जो खजाने निकल पड़े,

देखेंगे आज है कितनी ताकत तेरे सितम की,
हम गर्दन को तेरे आगे झुकाने निकल पड़े,

कहती है हूँ मैं दरिया, तुम डूब जाओगे,
फिर भी तेरे शहर में साँसे डुबाने निकल पड़े.......

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 10:41am

शुक्रिया प्रदीप भाई

Comment by Pradeep Kumar Kesarwani on July 5, 2012 at 11:52pm

यादों का तेरे मौसम जब - जब आया है, ...अश्को में बीते सारे ज़माने निकल पड़े,....दिल छु लिया.. बधाई हो आपको ....

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 5, 2012 at 10:39am

आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2012 at 10:37am

यादों का तेरे मौसम जब - जब आया है, 
अश्को में बीते सारे ज़माने निकल पड़े,

 देखेंगे आज है कितनी ताकत तेरे सितम की,
हम गर्दन को तेरे आगे झुकाने निकल पड़े--------    अरुण शर्मा जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने इन दो शेरों पर तो कुछ ज्यादा ही दाद कबूल करें पूरी ग़ज़ल पर बधाई 

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 4, 2012 at 11:22pm

वो हंस-2 के मर गयी, मैं रो-रो के जी गया,
मेरे सीने में वफ़ा के जो खजाने निकल पड़े, बहुत ही सुन्दर भाव युक्त इस लाईन में तो सचमुच खजाना भर दिया

Comment by Bishwajit yadav on July 4, 2012 at 8:32pm
मेरे सीने में वफ़ा के जो खजाने निकल पड़े,
देखेंगे आज है कितनी ताकत तेरे सितम की,
हम गर्दन को तेरे आगे झुकाने निकल पड़े,
कहती है हूँ मैं दरिया, तुम डूब जाओगे,
फिर भी तेरे शहर में साँसे डुबाने निकल पड़े.
वाह क्या बात है बहुत सुन्दर टच माई दिल
Comment by Yogi Saraswat on July 4, 2012 at 5:01pm

उल्फत की जिंदगी मैं जी-जी कर हारा हूँ,
समंदर में कश्तियाँ को बसाने निकल पड़े,

वो हंस-2 के मर गयी, मैं रो-रो के जी गया,
मेरे सीने में वफ़ा के जो खजाने निकल पड़े,

बहुत खूब ! सुन्दर शे'र और अल्फाजों से सजी हुई बढ़िया ग़ज़ल

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 4, 2012 at 12:16pm

आदरणीय रेखा जी , बहुत- बहुत शुक्रिया.

Comment by Rekha Joshi on July 4, 2012 at 12:10pm

अरुण जी 

देखेंगे आज है कितनी ताकत तेरे सितम की,
हम गर्दन को तेरे आगे झुकाने निकल पड़े, समर्पण का सुंदर भाव ,बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service