For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऋषि मुनियों की ये धरती
बहती ज्ञान की गंगा
योगी सिद्ध जन पूजे जाते
था मन निर्मल तन चंगा
कोई गाये लहराए कोई पूछे
बाबा रे बाबा तेरा रंग कैसा
दिव्य मुस्कान ले बाबा बोले
जिसमें मिला दो उस जैसा
काल बदला विचार बदला
आदमी का हाल बदला
अंधविश्वास आधुनिकीकरण की दौड़
बाबाओं ने भी चोला बदला
बिकता पानी बिकता खून
बिकती भूख गिरते भ्रूण
अस्मत बिकती कटते वन
सफ़ेद चोला काला मन
बिक रही जब हर चीज
बाबा फिर क्यों रहे गरीब
अपनी सुनते अपनी कहते
बाबा को मिल ताने देते
ध्यान लगा सुन लो भैया
बाबा जी अब क्या कहते
कौन कहा भैया बाबा बोलो
पाप पुन्य की गठरी खोलो
मैं ढोंगी चालबाज लालच में तुम्हें फँसाता
इतने तो नहीं मूढ़ मकड जाल समझ न आता
आते तुम सुन पास पड़ोस विज्ञापन तुम्हे लुभाता
बदल गया जग संस्कार समझ न तुमको आता
पूर्ण होते जब मनोरथ तुम्हरे शरण लगती प्यारी
भड़क गए बिफर पड़े बाबा लगता ढोंगी व्यभिचारी
कोई पहने श्वेत वस्त्र कोई भगवा नाना रूप धारी
बार बार तुम लुटते हर बार करते गलती भारी
खुद चाहत रखते हो हो घर बार धन मोटर गाडी
श्रम किये बिन कुछ न मिलता करम गति जात न टारी
चढाते भेंट मन से अपने बनाते मुझे वैभव शाली
घर की चकिया कोई न पूजत राजा हो या माली

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 4:08pm

जय हो आदरणीय अलबेला जी, सादर 

आपके वचन दिल को ठंडक दिए हैं 

हम तो आपके नजदीक आप दूर किस लिए हैं 

धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 4:05pm

आदरणीय उमा शंकर जी, सादर 

आपने बहुत तारीफ़ कर दी. बाबा बन जाऊं 

धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 4:04pm

आदरणीय अरुण जी सादर 

सही कहा कोई बाबा निर्मल नहीं निरमा है धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 4:03pm

स्नेही कुमार जी, सादर 

सही कहा आपने.  धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 4:01pm

आदरणीय रेखा जी, सादर 

दोषी हम ही हैं . धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 4:00pm

स्नेही महिमा जी शुभाशीष 

आपने मर्म को समझा , धन्यवाद 

Comment by MAHIMA SHREE on June 8, 2012 at 11:17pm

बार बार तुम लुटते हर बार करते गलती भारी
खुद चाहत रखते हो हो घर बार धन मोटर गाडी
श्रम किये बिन कुछ न मिलता करम गति जात न टारी
चढाते भेंट मन से अपने बनाते मुझे वैभव शाली
घर की चकिया कोई न पूजत राजा हो या माली

बिलकुल सहमत .. आमजन स्वयं अपने आपको मुर्ख बना रहा है ... बहुत ही सटीक वर्णन .. सिर्फ ढोंगी बाबाओ को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है .. इसमें लोगो की मुर्खता और अकर्मण्यता का भी उतना ही हाथ है ...

आदरणीय सर .. बहुत -२ बधाई आपको

Comment by Rekha Joshi on June 8, 2012 at 10:01pm

आदरणीय प्रदीप जी ,सादर नमस्ते ,

कोई पहने श्वेत वस्त्र कोई भगवा नाना रूप धारी
बार बार तुम लुटते हर बार करते गलती भारी ,हम लोगों को बार बार लुटने की आदत सी हो गई है ,बढ़िया रचना ,बधाई |
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 8, 2012 at 4:14pm
आदरणीय कुशवाहा सर, सही कहा आपने। आजकल ढोँगी बाबाओँ की कोई कमी नहीँ।
Comment by अरुण कान्त शुक्ला on June 8, 2012 at 2:10pm

आदरणीय , विलक्षण .. मन गदगद हो गया .. वैसे सच तो यही है कि कोई बाबा निर्मल नहीं , सब मन के मैले हैं | बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
5 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
7 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service