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दो साल पहले मैं बेरोज़गार था, बेरोज़गार था

फ़िल्म : सी आई डी
तर्ज़    : सौ साल पहले......

दो साल पहले मैं बेरोज़गार था, बेरोज़गार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

दोस्तों-पड़ोसियों  का कल भी कर्ज़दार था, कल भी कर्ज़दार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

हर साल कई जोड़ी चप्पल घिस जाती है
पर किरण रौशनी की कोई नज़र न आती है
बूढ़े बाप-माँ के लिए कल भी अन्धकार था, कल भी अन्धकार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा
भूख का शिकार था और ग़म का गीतकार था, ग़म का गीतकार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

फारम भरते भरते, ये हाथ थक चुके हैं
इस उम्र में ही सर के सब बाल  पक चुके हैं
नौकरी तो मिल जाती पर घूस से लाचार था, घूस से लाचार था,
आज भी हूँ  और कल भी रहूँगा
सिर्फ़ एक नौकरी का कल भी तलबगार था, कल भी तलबगार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 

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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 10:13am

सम्मान्य डॉ प्राची सिंह जी, वीडियो  तो अभी  उपलब्ध  नहीं है.....जैसे  ही  किसी कवि-सम्मेलन में प्रस्तुत  करूँगा तो बन जाएगा . परन्तु  आपने  इसे  सराहा व पसन्द किया ..यह मेरे लिए  ख़ुशी की  बात है .

प्रयास करूँगा कि आगे और भी बेहतर लिख सकूँ
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 2, 2012 at 10:06am
मज़ा आ गया बेरोजगारी हास्य पैरोडी पढ़ कर...आदरणीय अलबेला खत्री जी.
इस परोडी का विडियो भी पोस्ट कर दें अगर तो हास्य का मज़ा चौगुना हो जाएगा.
इस रचना के लिए हार्दिक बधाई.
सादर.
Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 9:14am

गम्भीर  मुद्दों  पर  लिखने का मतलब ये  तो नहीं आदरणीया राजेश कुमारी जी  कि  लेखक भी  गम्भीर ही हो जाये....और लेखक हों तो हों...अपन जैसा मसखरा  क्यों गम्भीर हो भाई ?  व्यंग्य  का मज़ा ही तब है जब  आँखों के आँसू  भी  थोड़ी देर के लिए मुस्कुरा दे.......हा हा हा

बहरहाल  आपकी सराहना  अच्छी लगी.  शुक्रिया  दिल में  है, लफ़्ज़ों में नहीं उतारूंगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 2, 2012 at 9:02am

वाह वाह अलबेला जी क्या पैरोडी बनाई है आज की बेरोजगारी जैसे सीरियस मुद्दे को कितनी आसानी से कह दिया बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

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