For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ वो मेरी बेटी है

हाँ  वो  मेरी   बेटी  है  

जो  बगल  में  लेटी है  

मेरा  प्यार  है  वो  

जीवन  की  बहार  है  वो 

हमारे प्यार की   निशानी 

एक अनकही   कहानी   

खिलखिलाहट   उसकी  

दीवाना  करती  है  

जाएगी  दूजे  घर  

एक  डर  भरती   है  

खिली  इस  बगिया   में 

वो  उपवन  कैसा  होगा  

कली  मासूम  सी 

काँटों  मैं  घिरी  होगी

दूँगी  वो  शिक्षा 

होगी रात तो  

कभी सहर होगी  

दुआ  बाबुल  की  है 

सुखी संसार  होगा 

पति का घर उसका 

सुन्दर उपहार होगा 

इस कुल  उस कुल 

अटूट बंधन होगा 

प्रेम प्रतिष्ठा से 

मान बढ़ाएगी 

माँ वधू  बेटी बन 

जग  रीति   निभाएगी 

हाँ  वो  मेरी बेटी  है  

 

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 5:03pm

आदरणीय अजय जी, सादर 

निश्चित ही डर भरती है 

धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 5:01pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी, सादर अभिवादन 

मैं भी आप जैसा हूँ, योग्यता में नहीं परिवार में.

आपकी शिक्षा जितनी प्रेरणा देती है उतनी आप के द्वारा की गयी मेरी प्रशंशा नहीं . आपके द्वारा बढ़िया अंक दिए गए है. आप ही का शिष्य भी तो हूँ. रचना सफल कही गुरु जी ने सब कुछ मिल गया. भले इसे कहीं भी स्थान न मिला हो. आपका हमेशा आभारी हूँ, बस स्नेह प्रदान किये रहिये. कट जायेगा सफर यूँ ही हँसते हँसते. सच्चे दिल से. आभार, महोदय जी.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 4:53pm

आदरणीय अशोक जी , सादर अभिवादन 

स्नेह प्रदान करने हेतु धन्यवाद 

Comment by Ajay Singh on June 2, 2012 at 12:45pm

जाएगी  दूजे  घर  

एक  डर  भरती   है .......   Respected Pradeep ji,eyes  really got wet.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2012 at 9:44pm

आदरणीय प्रदीप जी, इसे कहते हैं शब्दों की महत्ता और उनकी ताक़त.  आपने आँखों की कोर गीली कर दी और आपकी रचना सफल हो गयी.  मैं भी दुलारियों का गर्वीला और सनातनी बाप हूँ. 

सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 9:23pm

आदरणीय प्रदीप जी
                सादर,
                              खिलखिलाहट   उसकी 
                  दीवाना  करती  है 
                   जाएगी  दूजे  घर 
                    एक  डर  भरती   है 
                बहुत ही भावपूर्ण रचना. बधाई.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 6:33pm

स्नेही महिमा, शुभाशीष.

प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 6:32pm

धन्यवाद आदरणीय रेखा जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 6:31pm

धन्यवाद स्नेही आशीष जी.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 6:30pm

धन्यवाद ईश पुत्री, सस्नेह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service