For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चश्मे  तो हमने राह में पाये हैं बेशुमार

तेरी ही तिश्नगी में  आये हैं बार- बार

  

 प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली 

 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार

  

 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए 

 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार

 

 बता गमजदा दिल अब  कैसे ढकें बदन 

 खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार

 

 वादियों में  बुलबुलें अब चहकती नहीं  

  जब दर्द के  गुबार ने तडपाये हैं  चिनार 

 कैसे सुकून पाये 'राज'  इस जहान में   
 नफरतों की आग ने सुखाये हैं आबशार

*******.

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 9:24am

'चश्मे  तो हमने राह में पाये हैं बेशुमार

तेरी ही तिश्नगी में  आये हैं बार- बार

कैसे सुकून पाये 'राज'  इस जहान में   

 नफरतों की आग ने सुखाये हैं आबशार'

बहुत खूब फरमाया है. सुकूं मिला गज़ल पढ़ कर. आप 'राज' नाम से लिखती है, जानकार अच्छा लगा. आपके और मेरे तखल्लुस में बस एक नुक्ते का फेर है. - राज़ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 2, 2012 at 8:44am

अशोक कुमार रकतेला जी  हार्दिक आभार खुश हूँ जानकर की ग़ज़ल आपको पसंद आई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 2, 2012 at 8:43am

डा. सूर्या बाली जी हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 9:34pm

राजेश जी
        सादर,
प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली
 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार
 
 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए
 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार
 बहुत सुन्दर भाव. हार्दिक बधाई.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 29, 2012 at 10:45pm

सुंदर एवं भाव प्रधान रचना के लिए दिली दाद कुबूल करें राजेश कुमारी जी !! बहुत सुंदर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 28, 2012 at 9:04am

उमा शंकर मिश्र जी तहे दिल से शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया से हम बाग़ बाग़ हो गए 

Comment by UMASHANKER MISHRA on May 28, 2012 at 12:12am

प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली 

 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार

  

 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए 

 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार

 बेहतरीन,लाजवाब ,तारीफे काबिल बहुत अच्छा लगा दिल तार तार  हो गए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 27, 2012 at 5:31pm

प्रिय महिमा श्री जी हार्दिक आभार आपकी सुखद टिपण्णी हेतु 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 27, 2012 at 5:30pm

तहे  दिल से शुक्रिया सुरेन्द्र  कुमार भ्रमर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 27, 2012 at 5:29pm

डा .सूर्या बाली जी तहे दिल से शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
10 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service