For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुनः लुंठन हो रहा चुपचाप हैं हम|
अक्षमाला पर मरण के जाप हैं हम|

 
चिर विकेन्द्रीकृत हुई केन्द्रीय सत्ता,
नव्य युग, प्राचीनता के सांप हैं हम|

 
जातिगत और व्यक्तिगत संकीर्णता है,
तुम नहीं तुम कुछ नहीं,बस आप हैं हम|

 
फिर दरकने हैं लगी प्राचीर दृढतम,
पूर्वजों की ख्याति है और श्राप हैं हम|

 
स्वयम से तुल कर नहीं देखा स्वयं को,
दंड टूटे, माप टूटा,माप हैं हम||

 

Views: 435

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 7, 2012 at 12:56pm

आदरणीय अग्रज..

सादर वन्देमातरम|

आपका आशीर्वचन ही पर्याप्त है और यह कुछ आगे लिखने की प्रेरणा देता है..कोटिशः आभार

Comment by अश्विनी कुमार on April 5, 2012 at 11:07pm

प्रिय अनुज ,,

स्वयम से तुल कर नहीं देखा स्वयं को,
दंड टूटे, माप टूटा,माप हैं हम||

भाई काव्यात्मक टिप्पणी करना चाह रहा था लेकिन आज न जाने वाग देवी क्यों रूठी हुई हैं :(...जय भारत 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 9:03pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी...

आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रया को सादर नमन और आपका आभारी हूँ|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 8:46pm

आज  के जीवन और समाज की कटु सच्चाई से  मन के भीतर के  उवाह पोह ,द्वन्द की दशा को खूबसूरत शब्दों में बांधा है बधाई 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 8:43pm

आदरणीय अरुण भाई..

आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रया का कोटिशः आभार|स्नेह बनाये रखियेगा|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 8:40pm

आदरणीय प्रदीप सर आईपीएल तो एक तरह का ट्वेंटी ट्वेंटी है..मैं तो यहाँ पूरी पारी ही खेलना चाहता हूँ..योग्य गुरुओं का सानिध्य भी है और जब गुरु ही साथ है तो गोविन्द काहे को पीछे रहेंगे?मनोबल बढ़ाने वाली प्रतिक्रया का कोटिशः आभारी हूँ|सादर वंदे 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 8:37pm

प्रिय संदीप भाई...

आपकी प्रेरक प्रतिक्रया का कोटिशः आभारी हूँ|बस मन में जो कुछ भी है,एक वेगवान सरिता की भांति समस्त तटबंधों को तोड़ता हुआ बाहर आ जाता है...सादर वंदे

Comment by Abhinav Arun on April 4, 2012 at 1:55pm

वाह वाह मयंक जी आपकी भाषा - शिल्प के क्या कहने बहुत बहुत बधाई !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 4, 2012 at 1:40pm

फिर दरकने हैं लगी प्राचीर दृढतम,
पूर्वजों की ख्याति है और श्राप हैं हम|

badhai to main de raha hoon, par vahid bhai ki baat ka samarthan bhi hai. ipl shuru kar diya apne bahut khoob.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 4, 2012 at 11:47am

वाह मनोज भाई! यह केवल आप ही के बस की बात है| मैं तो कई दिनों से ख़ाक छान रहा हूँ मगर कुछ सूझ ही नहीं रहा और इधर आप दनादन चव्वे और छक्के लगाये जा रहे हैं|

फिर दरकने हैं लगी प्राचीर दृढतम,
पूर्वजों की ख्याति है और श्राप हैं हम| - क्या ख़ूब कही आपने...!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
54 minutes ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service