For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा : हाथी के दांत 

बड़े बाबू आज अपेक्षाकृत कुछ जल्द ही कार्यालय आ गए और सभी सहकर्मियों को रामदीन दफ्तरी के असामयिक निधन की खबर सुना रहे थे. थोड़ी ही देर में सभी सहकर्मियों के साथ साहब के कक्ष में जाकर बड़े बाबू इस दुखद खबर की जानकारी देते है और शोक सभा आयोजित कर कार्यालय आज के लिए बंद करने की घोषणा हो जाती है | सभी कार्यालय कर्मी इस आसमयिक दुःख से व्यथित होकर अपने अपने घर चल पड़ते  है | बड़े बाबू दफ्तर से निकलते ही मोबाइल लगा कर पत्नी से कहते है "सुनो जी तैयार रहना मैं आ रहा हूँ, आज  सिनेमा देखने चलना है"

Views: 2423

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheel Kumar on March 20, 2012 at 10:10pm

मैंने तो किस्सा सुनाया था किसी शैतान का , आपको क्यों शक हुआ यह आपके बारे में है  !!!

खोजते हो तुम शिकारी को कहाँ जंगल के बीच , वह तो पोशीदा कहीं भीतर के अंधियारों में है !!!
     हर जगह ही हैं बड़े बाबु .......... सुन्दर रचना ..
Comment by DR SHRI KRISHAN NARANG on March 20, 2012 at 9:37pm

Yeh laghu katha jeevan ka sach bayaan karti hai. Hum logon ki prayogshaala main bhi log condolence meeting ke samay se hi bahar jaane ki taiyaari kar dete the aur meeting main bahut kam log jaate the. lekhak ko bahut bahut badhai.

Dr Shri Krishan Narang, Jamshedpur

Comment by अश्विनी कुमार on March 20, 2012 at 4:35pm

आदरणीय बागी जी ,सादर अभिवादन . इस लघु कथा ने आज के अति आधुनिक समाज को बड़ी कुशलता से प्रतिबिम्बित किया है ,, जय भारत 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2012 at 4:16pm

//श्रद्धेय बाग़ी जी, यह लघुकथा मज़ेदार और हास्योत्पादक तो है ही, साथ ही आज के समसामयिक संदर्भों में परिवेश पर एक तीक्ष्ण कटाक्ष भी है ।//

आदरणीय रविन्द्र नाथ साही जी, उक्त विचार से सहमत हूँ एवं आभारी हूँ |

///आज का जल्दबाज़ आदमी मतलब के लिये हर प्रकार का शार्टकट अपनाने को तैयार है, चाहे उसका प्रतिबिम्ब कितना भी अशोभनीय क्यों न हो । रातोंरात अमीर बनने की बात हो, ट्रैफ़िक की भीड़ से कन्नी काटकर संकरी गलियों का रास्ता अपनाने की बात हो, या फ़िर आप महोदय की तरह एक अदद कहानी रचने की ही बात हो । ///

आदरणीय आपके उपरोक्त विचार को मैं समझ नहीं सका, प्रस्तुति में कोई कमी हो तो स्पष्ट रूप से बताये , सदैव मैं उसे सर आँखों पर बैठाने के लिए तैयार हूँ किन्तु आप के द्वारा बोल्ड पक्ति में कही गई बात का अर्थ मैं नहीं निकाल सका, कृपया स्पष्ट करना चाहेंगे |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2012 at 4:06pm

आदरणीय सौरभ भईया , सराहना के साथ कमजोर पक्ष को इंगित करने हेतु आपको कोटिश : धन्यवाद , आगे से मैं और भी चौकस रहूँगा जिससे शिल्प की कमियों को भी न्यूनतम कर सकूँ |

पुनः आपका आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2012 at 4:03pm

संदीप जी, सराहना हेतु आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2012 at 4:02pm

आदरणीय लाल बिहारी जी, जनता में जागरूकता निसंदेह आई है किन्तु अभी पूरी तरह नहीं, चौक चौराहों पर बैठे नीम हकीम, तोते के साथ बैठा भविष्यवक्ता, जहर खुरानी गिरोह, दागदार नेता आदि की दूकान यदि अभी तक प्रोफिट में है तो जागरूकता कहा है , बहरहाल टिप्पणी हेतु आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2012 at 3:57pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय हरीश भट्ट जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2012 at 3:56pm

आभार आदरणीया , महिमा श्री जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 20, 2012 at 2:39pm

आस-पास की या दैनिक जीवन की कुछ सचाइयाँ कितनी चुभती हुई होती हैं !

यह कथा इस तथ्य का भी दर्पण है कि टुकड़ों-टुकड़ों में जीते, आपाधापी, भागमभाग और तमाम ऊहापोह में जकड़े एक आदमी के लिये स्वयं के परिवार को दिया जाता समय कितना महँगा हो गया है. कुछ पल चाहे जिस तरह से सुलभ हों उपहार सदृश होते हैं

कथा को भाषायी स्तर पर थोड़ा और कसा जा सकता था.

इस लघुकथा के लिये बधाई, भाई गणेशजी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service