For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


ब्रज मां होली खेले मुरारी अवध मां रघुराई

मेरा संदेसा पिया को दे जो जाने पीर पराई

 

 

कोयल को अमराई मिली कीटों को उपवन

मैं अभागिन ऐसी रही आया न मेरा साजन

 

लाल पहनू , नीली पहनू,  हरी हो  या वसंती

पुष्पों की माला भी तन मन शूल ऐसे  चुभती

 

 

सूनी गलियां सूना  उपवन सूना सूना संसार है

मैं बिरहिन यहाँ तड़फूं कैसा तेरा ये  प्यार है

 

प्रियतम भेजी कितनी पाती तेरी याद सताती है 

मैं तो दूजे  घर  की बेटी माटी की याद न आती है 

 

अब तो आजा बिखर चुकी हूँ लगता सब बेकार है

अब न आया तो फिर न मिलूंगी जीवन धिक्कार है

प्रदीप  कुमार सिंह कुशवाहा  

 

Views: 725

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 16, 2012 at 1:16pm

आदरणीय राजीव जी. सराहना हेतु आभार.

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 16, 2012 at 10:17am

बहुत सुन्दर कविता,आदरणीय प्रदीप जी.

प्रियतम भेजी कितनी पाती तेरी याद सताती है

मैं तो दूजे  घर  की बेटी माटी की याद न आती है

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2012 at 5:03pm

आदरणीय प्रदीपजी, आपका स्वागत है. मैं रचनाओं की तारीफ़ नहीं करने केलिये माना जाता हूँ.  हा हा हा हा..

यानि, आप स्टूडेंट तो आला दर्ज़े के हैं, जी !!

आदरणीय, आप अपनी प्रविष्टियों के लिहाज से इस मंच पर अपनी उपस्थिति बनाये रखें.  प्रकाशन हेतु आयी रचनाओं पर आदरणीय प्रधान सम्पादक जी का अनुमोदन बहुत ही अहम् है. 

इसके साथ ही, इस मंच के सभी आयोजनों में सहर्ष हिस्सा लें. देखियेगा, चमत्कारिक प्रभाव होगा !!

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 3:57pm

आदरणीय . saurabh जी, आपने सराहा.  पसंद किया . आभार.  khali tarif hi karenge ya jaisi mehnat anya lekhkon ko guide karne main karte hain main kyun vanchit hoon.  sahi student nahi hoon kya. sneh apekshit hai. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 3:51pm

आदरणीय . tripathi जी, आपने सराहा.  पसंद किया . आभार. maine is manch par nivedan kiya hai ki sahitya ka takniki paksha ki a, b, c, d nahi aati hai. sikhne aaya hoon aap logon ke beech. keval likh deta hoon. sajana, savarna, aap logon ko sonpa hai. aap hi bata sakte hain ki ye chand hai, kavita hai ya kuch bhi nahi. margdarshan sbhi se apekshit hai. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2012 at 12:51pm

विरही/ विरहिणी को स्वर दे आपने ऋतु को मान दिया है. आदरणीय प्रदीपजी, सादर बधाई.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 11:18am
कुशवाहा जी सभी पंक्तियां अच्छी लगीं बधाई।किन्तु यह किस छंद में है यह मैं नहीं समझ पाया।
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:07am
आदरणीय . सिंह साहब  जी, आपने सराहा.  पसंद किया . आभार. 
main तो यही हूँ.
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:05am

आदरणीय . बागी जी, आपने सराहा.  पसंद किया . आभार. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:04am

आदरणीय . अरुण जी, आपने सराहा.  पसंद किया . आभार. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
23 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service