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जीवन इक खुली किताब है . .

कुछ पन्ने इसके पलट गये

कुछ को न हाथ लगाया है

कुछ याद पुरानी बाकी है

कुछ में इतिहास समाया है


कुछ में वो बीता बचपन है

जिनकी इक अमिट निशानी है

कुछ में है लिखा हुआ छुटपन

कुछ में अनकही कहानी है


कुछ पन्ने बीती रातों से

कुछ ख्वाबों से कुछ बातों से

कुछ यूँ ही छपते चले गए

हर इक छोटी मुलाकातों से


कुछ में हैं सपने भरे हुए

कुछ में नासूर पुराने हैं

कुछ अपनो के भी पन्ने हैं

कुछ पन्ने भी बेगाने हैं


संघर्ष छपा कुछ पन्नो में

कुछ काले हैं बादल से हैं

कुछ कोरे पन्ने उड़ते हैं

कुछ पन्ने भी पागल से हैं


कुछ बांट जोहते कल के हैं

आते जाते हर पल के हैं

कुछ आशाओं से छपे हुए

आने वाले मंगल के हैं


कुछ भीग गए हैं आँसू से

कुछ हँसी छिपाए रखें हैं

कुछ में है धूप सुनहरी सी

सब रंग समाये रखें हैं


इन पन्नों में ही सिमट गया

अपना हर एक हिसाब है

जीवन इक खुली किताब है

जीवन इक खुली किताब है . . . . .



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Comment

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Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on January 18, 2012 at 12:48pm
प्यारे अमित जी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ, आप को बहुत-बहुत बधाई इस सुन्दर कविता के लिए............... !!!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2012 at 4:01pm

अमितभाई, आपकी कविता संयत और भावप्रधान है. आपका यह प्रयास भाया.  हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

रचना का प्रवाह कहीं-कहीं अँटकता हुआ है लेकिन प्रारम्भ में ऐसा होता है.

 

आपकी एक पंक्ति है - हर इक छोटी मुलाकातों से

एक सुझाव : ’हर’ या ’हर एक’ या ’हरेक’ या ’प्रत्येक’ के साथ संज्ञाओं का वचन बहुवचन नहीं होता है.  इस हिसाब से पंक्ति ”हर इक छोटी मुलाकात से” होगी जोकि तुकांत निबाह नहीं सकती. अतः आपको पुनर्प्रयास करना होगा. 

दूसरे, रचना या प्रविष्टि में अक्षरी या हिज्जे (spellings) पर अवश्य संवेदनशील रहें.

 

विश्वास है, आपकी अगली रचना हर तरह से प्रभावशाली होगी.  .. सधन्यवाद.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 17, 2012 at 3:35pm

बहुत सुन्दर कविता कही है भाई अमित पाण्डेय जी, बधाई स्वीकारें. यह रचना हमारे मंच के सन्देश और उद्देश्य से काफी मेल खाती है जिसके लिए आपको एक्स्ट्रा बधाई.

Comment by K.N.RAI on January 17, 2012 at 10:40am

bahut hi umda..

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2012 at 2:41am

अमित जी, बहुत सुंदर रचना....''जीवन एक खुली किताब है''. आपको बहुत बधाई.

'' कुछ भीग गएँ हैं आँसू से

कुछ हँसी छिपाए रखें हैं

कुछ में है धुप सुनहरी सी

सब रंग समाये रखें हैं''

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