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विराम-चिह्न की आत्मकथा

 

विराम-चिह्न की आत्मकहानी, सुनें उसी की जुबानी ।

 

मैं विराम-चिह्न हूँ। कुछ विद्वान मुझे विराम चिन्ह या विराम भी बोलते हैं लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं है। हाँ, एक बात मैं बता दूँ;   मेरी कोशिश रहती है कि लिखित वाक्यों आदि में मैं किसी न किसी रूप में उपस्थित रहूँ । मैं अपने मुँह मियाँ मिट्ठू नहीं बन रहा पर एक दिन मेरे गुरुजी बता रहे थे कि दुनिया में जो भी वस्तु, संकल्पनाएँ आदि हैं; सबका अपना-अपना महत्व होता है । मुझे जिज्ञासा हुई और मैंने गुरुजी से पूछा, "गुरुजी मेरी उपयोगिता क्या है ?"गुरुजी मुस्कुराए और बोले, "विराम! बेटे विराम! तुम तो बहुत काम के हो। तुम्हारी अनुपस्थिति में अर्थ का अनर्थ हो जाए और वाक्यों में संदिग्धता आ जाए।" मुझे प्रसन्नता हुई और फिर मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि जरा मेरे परिचय के साथ-साथ मेरी उपयोगिता पर भी प्रकाश डालने की कृपा करें । गुरुजी ने जो कुछ बताया, वह सब मैं बयाँ कर रहा हूँ; कान तो दीजिए।

लिखित भाषा की स्पष्टता, अर्थपूर्णता, प्रभावपूर्णता आदि में मेरा योगदान अविस्मरणीय एवं अमूल्य है। आइए, एक उदाहरण की सहायता से समझाता हूँ -

पढ़ो, मत लिखो। इस वाक्य से यह स्पष्ट है कि पढ़ने के लिए कहा जा रहा है।

उपरोक्त वाक्य में जरा मेरे (विराम चिन्ह) स्थान में परिवर्तन करके देखते हैं - पढ़ो मत, लिखो।

इस वाक्य में लिखने के लिए कहा जा रहा है।

देखा आपने मेरा कमाल। यहाँ तो मेरे स्थान परिवर्तन करने से ही वाक्य विपरीत अर्थ देने लगा।

आइए, अब मैं अपने रूपों का परिचय कराता हूँ, उदाहरण रूपी चाय की चुस्की के साथ।

 

1.      पूर्ण विराम (।) :― नाम से ही मैं स्पष्ट हूँ । वाक्य पूर्ण होते ही मैं उपस्थित हो जाता हूँ। जैसे― मेरा नाम विराम है। मैं अविराम का छोटा भाई हूँ।

 

2.      अर्द्ध विराम (;) :― पूर्ण नहीं हूँ मैं। हाँ महोदय, वाक्य के बीच में ही शोभायमान हो जाता हूँ।

जैसे― जब भी श्याम आता है; तुम भी आ जाते हो।

 

3.      अल्प विराम (,) :― जब भी वाक्य आदि में एक तरह की वस्तुओं आदि को सूचित करने वाले शब्द आते हैं; मुझे अपनी उपस्थिति दर्ज करनी ही पड़ती है।

जैसे― राम, श्याम और रहीम मित्र हैं।

 

4.      उपविराम (:) :― मूल बात को लिखने से पहले मुझे स्थापित कर दें तो मैं गदगद हो जाऊँ।

जैसे― राम तीन हैं : श्रीराम, परशुराम और बलराम।

 

5.      प्रश्नवाचक चिह्न (?) :― उत्तर की अपेक्षा करें और मैं न रहूँ।

जैसे― आप कहाँ जा रहे हैं?

 

6.      विस्मयसूचक चिह्न (!) :― वाक्य विस्मयभरा हो तो मेरी उपस्थिति प्रार्थनीय है।

जैसे― अरे ! तुम कब आए?

 

7.      रेखिका चिह्न (―) :― शब्द के बाद मुझे लगाके उसकी परिभाषा या उसकी उपयोगिता आदि को चरितार्थ कर दीजिए।

जैसे― जैसे के बाद लगा हूँ।

 

8.      संयोजक चिह्न (-) :― अपने भाई रेखिका चिह्न जैसा ही रूप है मेरा, पर है उनका आधा । मैं अभिन्न शब्दों के बीच में आकर उनके प्रेम को बढ़ा देता हूँ ।

जैसे― माता-पिता, भाई-बहन ।

 

9.      विवरण चिह्न (:―) :― विवरण लिखने से पहले मुझे लगाइए जैसे मेरे रूपों का विवरण लिखते समय लगाया है आपने।

 

10.  कोष्ठक चिह्न (()) :― मैं अपने मुँह में उसी शब्द या शब्दों को स्थान देता हूँ, जिसका संबंध मेरे पहले आए शब्द या शब्दों से हो।

जैसे― वह मुम्बई (महाराष्ट्र) में रहता है।

 

11.  उद्धरण चिह्न (' ' / " " ) :― मैं मूल शब्द या शब्दों को घेरकर उसकी उपयोगिता को सबकी नजरों में लाता हूँ।

जैसे― १. 'माँ मन्थरा' प्रभाकर द्वारा लिखा गया है।

राम ने कहा, "सीता अच्छी है ।"

 

12.  पुनरुक्तिसूचक चिह्न (") :― मेरा प्रयोग करने से आप एक ही शब्द को एक के नीचे एक कई बार लिखने से बच जाएँगे।

जैसे― १. श्री लालू यादव।

         २. " लल्लू सिंह।

 

13.  लाघव चिह्न (०) :― शब्द को संक्षेप में लिखना चाहते हैं तो मेरा उपयोग करें।

जैसे―  १. भा० प्रौ० सं० (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान)

            २.पं० मदन मोहन मालवीय (पं० = पंडित)

 

आप सबको धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मैं विराम चिह्न अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

 

आप सबका अपना-

 

प्रभाकर पाण्डेय
Prabhakar Pandey
 
हिंदी अधिकारी
Hindi Officer

 सी-डैक, पुणे
 C-DAC, PUNE

पुणे विश्वविद्यालय परिसर, गणेशखिंड,
पुणे- 411007, भारत
Pune University Campus, Ganeshkhind,
Pune - 411007, India

 

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Comment

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Comment by AK Rajput on November 27, 2011 at 9:29am
बहुत  अच्छी जानकारी | 
Comment by Shanno Aggarwal on November 27, 2011 at 4:33am

प्रभाकर जी, इस जानकारी हेतु बहुत धन्यबाद.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2011 at 11:41pm

आदरणीय प्रभाकर पाण्डेय जी, बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक लेख की प्रस्तुति है, इस जानकारी भरे आलेख हेतु बधाई स्वीकार करे |

कृपया ध्यान दे...

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