For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

---------------अंतिम अंक   --------------------

"कौन है?" मैंने हड़बड़ाकर पूछा .


"साहब ,दरवाजा खोलिए, गजब हो गया ." रामरतन के स्वर में घबड़ाहट थी. मैंने दौड़कर दरवाजा खोला...........

"क्या बात है रामू ?"

"गजब हो गया साहब ,शालू बीबी ने स्टोव से तेल छिड़क कर अपने को बूरी तरह जला लिया है "

मेरा कलेजा मुंह को आ गया .

"शालू कहां है?"
"अस्पताल में साहब ." मैं इसी तरह दौड़ा हुआ अस्पताल पंहुचा .शालू बूरी तरह जल चुकी थी . उसका सुन्दर एवं आकर्षक चेहरा विकृत एवं डरावना हो चुका था. वर्माजी , मधु एवं उसकी मां फफक-फफक कर रो रहे थे .
संजय और संजीव सहमे हुए एक कोने में खड़े थे. मैं सीधे शालू के पास पंहुचा .
"शालू ,यह क्या कर लिया तुमने? मुझे सोचने का मौका तो दिया होता ." मैं लगभग रो पड़ा था. मेरी आर्द आवाज सुनकर वह मुश्किल से आँखें खोल सकी थी---"तुम्हारे अन्दर सोचने की भी हिम्मत नहीं है प्रसून ." अटक-अटक के शालू ने कहा . वह जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी . उसकी स्थिति देखकर स्पष्ट आभास हो रहा था कि जिंदगी की अपेक्षा मौत की पकड़ कहीं मजबूत थी .
"प्रसून...." आखें खोलने की चेष्टा करते हुए उसने कहा .
"हां शालू मैं यहीं हूं ......बोलो."   मैं बच्चों की तरह रो रहा था . 
"तुमको मैंने काफी परेशान किया , माफ करना ."  धीरे-धीरे उसने अपने झुलसे हुए हाथ से मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा-- "वादा करती हूं.....नहीं....आऊं.... ."  उसके झुलसे हुए हाथ झूल गये .  "शालू... ."   मैं चिल्ला उठा . पर मेरी आवाज उस तक नहीं पहुंची . अकारण , बेबात एक बहुत बड़ी बात हो गयी.
एक अप्रत्याशित घटना घट गयी . शालू को समाज ने शक की वेदी पर बलि चढ़ा दिया . जब यीशु को इंसानों का समाज शूली पर लटका सकता है तो फिर शालू की क्या बिसात ? बनी-बनाई लीक पीटने वाली शालू की मां अब सर पीट रही थी. मैं फिर वहाँ ठहर नहीं सका . अपने क़दमों को घसीटते हुए बाहर आ गया .
"अंकल...." मैं सन्न रह गया .
"शा.... ." मेरा मुंह खुला रह गया . सामने शालू नहीं एक छोटी लड़की हाथ में कागज़ का चिट लिये मुझसे कुछ पूछना चाह रही थी , किन्तु मैंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया . बेजान क़दमों से आगे बढ़ गया .
आज भी  मैं अपने आपको शालू का कातिल समझता हूं . ऐसा लगता है कि अब दरवाजे पर आकर शालू खड़ी हो जाएगी , किन्तु ये मेरा भ्रम है जो विगत कई  वर्षो से मुझे छलावा देता आ रहा है ..............................................(समाप्त)

 

Views: 420

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on October 11, 2011 at 11:58pm
आदरणीय, आपकी टिपण्णी न सिर्फ मेरे लिए टिपण्णी होती है - अपितु एक सबक भी. कहानी आपको अच्छी लगी इसके  लिए दिल से आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2011 at 6:30pm

भाई सतीशजी, हार्दिक बधाई.

कहानी की सफल समाप्ति के उपरांत पाठक कहानी के नायक प्रसून की तरह निःशब्द अवश्य हो जाता है, परन्तु, उसका मनस अतिशय घुर्णन लिये अनेकानेक प्रश्नों के घालमेल की अनुभूति करता है. ऐसे-ऐसे प्रश्न जिनके संतुष्टिकारक उत्तर नहीं हुआ करते,  होती हैं तो विडंबनाएँ जो समाज की अव्यावहारिक परिपाटियों और व्याप्त घिनौने ढोंग से बजबजाती गंदी नालियों में पिल्लुओं की तरह उपजती हैं. 

कहानी के कथ्य का प्रवाह तेज़ है और यही इसकी सफलता का राज़ है.  शिल्प कसा हुआ है किन्तु कुछ प्रयास इसके गठन को और सशक्त कर सकता था. कहानी की संवेदनाशीलता प्रभावित करती है  तथा इसकी भावप्रवणता इसके पहले अंक से ही पाठकों को अपने साथ कर लेने में सक्षम है.

अल्हड़ वयस की प्राकृतिक उत्सुकता,  उस वयस-विशेष में संभव सहज आकर्षण, पवित्र समर्पण और इनसब पर हावी होती सामाजिक विद्रुपताओं पर लिखी इस सशक्त कहानी के लिये आपको पुनः-पुनः हार्दिक बधाई.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
11 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
16 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service