21 21 21 21 2
एक और दास्तां सुनो
एक और खूँ चकां हुई
एक और दर्द बड़ गया
एक और राज़दाँ हुई
एक और दाग लग गया
एक और जाँ निहाँ हुई
एक और रूह जम गई
एक और ख़त्म जाँ हुई
एक और आग लग गई
एक और लौ तवाँ हुई
एक और फूल आ गया
एक और सब्ज माँ हुई
एक और हादसा हुआ
एक और बे अमाँ हुई
एक और बचपना गया
एक और रूह जवाँ हुई
एक और अश्क पी गये
एक और खुश्क याँ हुई
एक और मौजिजा हुआ
एक और अर्ज़ हाँ हुई
एक और इश्क में सनम
एक और दास्ताँ हुई.................
(मौलिक व अप्रकाशित)
✍ आज़ी तमाम..................
Comment
सादर प्रणाम आदरणीय समर गुरु जी
शुक्रिया गुरु जी अरकान के विषय में आगे से ध्यान रखूँगा
मार्गदर्शन करते रहें
धन्यवाद
अध्यनरत रहें,सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अभी अशआर के कथ्य और रब्त को लेकर आपको बहुत मिहनत करना है ।
दूसरी बात ये कि आपने अरकान भी ग़लत लिखे हैं,इसके अरकान हैं:-
212 1212 12
आदरणीय समर गुरु जी सादर प्रणाम
जी गुरु जी में अध्यनरत हूँ साथ साथ लिख भी रहा हूँ
लिखता तो मैं अपने भावों को काफी समय से था बस मुझे विधा का पता नहीं था
आपके द्वारा सुझाई गई किताब " ग़ज़ल की बाबत " बहुत ही सार्थक साबित हो रही है
मात्राओं, बहर, अलिफ़ वस्ल, इज़ाफत आदि की जानकारी अब होने लगी है थोड़ी थोड़ी हाँ कुछ लफ़्ज़ों को लिखने में नुक्ता आदि का रह जाना और भी बारीकियों पर ध्यान दे रहा हूँ
गुरु जी आपका हृदय से धन्यवाद आशीर्वाद बनाये रक्खें............
जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, अभी आपको बहुत अध्यन की ज़रूरत है, इस प्रस्तुति पर बधाई ।
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