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मेरी भावनाएं ...

एक दिन ,

भावनाओ  की  पोटली  बांध 

निकल  पड़ी  घर  से ,

सोचा,

समुद्र  की  गहराईयों  में  दफ़न  कर  दूंगी  इन्हें ..

कमबख्तों  की  वजह  से  ..

हमेशा  कमजोर  पड़  जाती हूँ  ..

फेक  भी  आई  उन्हें ..

दूर  , बहुत  दूर

पर  ये  लहरें  भी  'न' .--

कहाँ  मेरा  कहा मानती  हैं ..

हर  लहर ....

उसे  उठा  कर  किनारे  पर  पटक  जाती , 

और  वो  दुष्ट  पोटली ..

दौड़ती  भागती  मेरे  ही  कदमो  में  आ  रूकती …  

उठा   ले  आई  उसे,  ये  'सोच  कर '

कल  फिर  आउंगी , और  फेंक  दूंगी  उन्हें 

दूर  'बहुत  दूर' .....

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Comment by Rash Bihari Ravi on July 5, 2011 at 11:47am

समुद्र  की  गहराईयों  में  दफ़न  कर  दूंगी  इन्हें ..

कमबख्तों  की  वजह  से  ..

हमेशा  कमजोर  पड़  जाती हूँ  ..

khubsurat lajabab
Comment by Neelam Upadhyaya on July 5, 2011 at 10:38am

"हर  लहर ....
उसे  उठा  कर  किनारे  पर  पटक  जाती,
और  वो  दुष्ट  पोटली ..
दौड़ती  भागती  मेरे  ही  कदमो  में  आ  रूकती

 

क्या बात कही है आपने ! भावनाएँ ही तो इन्सानियत की धरोहर हैं । बहुत बढ़िया ।

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on July 5, 2011 at 10:07am
" बहुत  सुन्दर और सही "अनिता" जी , 
Comment by डॉ. नमन दत्त on July 5, 2011 at 7:42am
सुन्दर रचना...पठनीय के साथ-साथ मननीय भी...
Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on July 4, 2011 at 11:14pm
अतीव हृदयस्पर्शी चित्रण किया है भावनाओं का,भाषा की सरस सौम्यता प्रशंसनीय है।

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