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मुरीदों के जादुई चिराग़ - (लघुकथा) /कहानी /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (40)

गहरी नींद में सोये हुये इक्कीसवीं सदी के मानव को सपने में पता नहीं कहाँ से अलाउद्दीन का चिराग़ मिल गया। एकांत में घिस-घिस कर परेशान हो गया, चिराग़ काम नहीं कर रहा था, मानव निराश हो रहा था। ग़ुस्से में जैसे ही उसने ज़मीन पर पटका , अट्टाहास करता हुआ जिन्न प्रकट होकर बोला-
"क्या हुक़्म है आका ! "
पहले तो मानव औंधे मुंह गिरा, फिर संभलकर खड़े होकर उसने विशालकाय जिन्न से पूछा-
"क्क्क्कौन हो तुम, क्या नाम है तुम्हारा ?"
"सतरंगी विकास ! सतरंगी विकास है नाम मेरा !"
मानव ने अपनी आँखें मलते हुए कहा- "ल्ल्ल्लेकिन तुम तो बड़े भयानक बदरंगे से लग रहे हो मुझे ! "
"मैं ग़ुलाम हूं आपका मेरे आक़ा, काम की बात कीजिए, आइ अम वेरी बिज़ी , यू नो ! सिर्फ और सिर्फ एक सेवा कर पाऊंगा मैं, फ़रमाइये क्या हुक़्म है आक़ा !"
"मतलब मेरा एक ही काम करोगे, तो क्या किसी और के लिए भी काम करते हो ?"
"जी सरकार, मैं कई रूपों में कई तरह से कई लोगों की सेवायें कर रहा हूँ, लेकिन अभी आपकी सेवा में हूँ, हुक़्म कीजिए मेरे आक़ा !"
मानव ने सकपकाते हुए कहा- "दम घुट रहा है मेरे भाई, फिर से वैसी ही धरती कर दो, वैसा ही पर्यावरण कर दो, वैसे ही जंगल, वनस्पति-पशु-पक्षी सुखमय कर दो जैसा अलाउद्दीन के समय था, बड़ी कृपा होगी !"
"मालिक का हुक़्म सर आँखों पर, लेकिन एक काम मेरे लिये आपको भी करना होगा बाद में ! गिव एंड टेक....लेन-देन का युग है न !"
"ओ.के."
जिन्न ने मानव को अपनी हथेली में उठाया और पलक झपकते ही मानव हरी-भरी धरती पर था, विशुद्ध पर्यावरण में बहुत ख़ुशहाल कीड़े-मकोड़ों, इल्लियों- तितलियों से लेकर सभी प्रसन्नचित वनस्पति-पशु-पक्षी, नर-नारी देखकर मानव को मानो जन्नत मिल गई !
"मालिक ख़ुश, तो ग़ुलाम ख़ुश ! आक़ा अब आप मेरा काम कर दीजिए !" - यह कहते हुये जिन्न ने फिर अट्टाहास किया और कहा- " चार-पाँच किस्म के लोगों की सेवा नहीं करना चाहता हूँ, उनकी ग़ुलामी से मुझे आज़ाद करा दो मेरे आक़ा !!
"वो कौन हैं, बताओ मुझे !"

"पहले ..धन और धनवान ! धन के मुरीद भ्रष्टाचार के उम्दा कारगर तरीक़े सोचते हैं। धनवान धनी होने और धन से 'तन-मन-सुख ' के नये-नये प्रयोग करते हैं मेरे आक़ा !"
"और दूसरे... सत्ता के मुरीद... 'फूट डालो राज़ करो', 'वोट, नोट और खोट' की राजनीति चलाने के नये-नये नुस्ख़े आजमाते रहते हैं मेरे मालिक !"
"और कौन ज़ल्दी बताओ !" मानव बेचैन हो रहा था।
"तीसरे... विश्व सत्ता के मुरीद ..राष्ट्रों पर शासन करने वाले विश्व पर सत्ता क़ायम करने के नये-नये आधार और फार्मूले आजमाते हैं ! दुनिया में राज करने के लिए धर्म प्रचार के मुरीद कभी धर्मांतरण के नाम, तो कभी धर्म के नाम ताक़त और आतंक , दम और बम, अहम और वहम से एक तरह का तम जग में फैलाकर दूसरी क़ौमों को अपनी राह पर चलाने के प्रयोग करते हैं ! मसाइल की मिसाइलें दागते हैं मेरे आक़ा !" - जिन्न अपनी गर्दन झुकाते हुए लगातार कहता गया-
"चौथे.... उद्योग और औद्योगिक विकास के मुरीद ...जन-कल्याण के नाम नये-नये उत्पादों और मशीनरी में उलझ कर जन-धन को उलझाते-सुलझाते रहते हैं , मालिक !"
"और पाँचवाँ कौन ?" - अत्यंत दुखी होकर मानव ने पूछा ।
"पाँचवें.....विज्ञान के मुरीद... वैज्ञानिक विज्ञान से इन्सान को मशीन और मशीन को इन्सान बनाने के फार्मूले खोज कर या बनाकर धरती से आकाश और आकाश से धरती नापते रहते हैं, अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार-मार कर धरती का शोषण कर , दुर्गत कर दूसरी धरती तलाश-तलाश कर मंगल पर मंगल-अमंगल करते रहते हैं मेरे मालिक ! वनस्पति-पशु-पक्षी के भक्षी सपनों में सिर्फ अपने मंगल की सोचते रहते हैं मेरे आक़ा!
मुझे इन सबके चंगुल से आज़ाद करा दो मेरे आक़ा !"
जिन्न को चिल्लाते , रोते देख और उसकी मांगों को सुनकर मानव के होश उड़ गये !
तभी वह जिन्न घुटने टेक कर मानव के सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर बोला- " मैंने आपका काम किया, अब आपको मेरा काम करना है आक़ा , बोलो कर पाओगे ?"
मानव को पसीना आने लगा, घबराहट में हकलाते हुए बोला- "म्म्ममैं यह सब... इतना सब भला कैसे कर पाऊंगा ! मुझे माफ़ कर दो मेरे भाई !"
जिन्न फुर्ती से उठकर खड़ा हो गया और दहाड़ कर बोला- " यही तो विडम्बना है ! इन्सान धरती और पर्यावरण के चिर यौवन की सोचे या अपने ही चिर यौवन का फार्मूला खोजे ?"
और फिर पलक झपकते ही जिन्न मानव को वापस उसी जगह उसी हाल में छोड़ कर ग़ायब हो गया।
सपना टूटते ही मानव ने करवट बदली तो धड़ाम से बिस्तर से नीचे गिरा । वह ज़मीन पर आ चुका था। सिरहाने अख़बार पड़ा हुआ था- न्यूज़ हैडलाइन थी - "मिल गया चिर यौवन का फार्मूला !"



(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 5:29am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने एवं हौसला अफ़ज़ाई हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 3:50pm
रचना पर सक्रिय उपस्थिति व सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी व आदरणीया राहिला जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 3:47pm
मेरी ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नयना आरती कानिटकर जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2015 at 1:57pm
सम्मान्य पाठकगण, मेरी इस रचना (लघुकथा/कहानी) में---
जिन्न के द्वारा की गई मांग को तीन लाइनों में भी कह सकते थे, लेकिन मांगों के कारण तथा प्रदूषण के कारक बताने की चाहत में ऐसा हो गया है। प्रत्येक मांग का गहरा संबंध पर्यावरण की उपेक्षा व प्रदूषण से है। इन पांचों तरह के स्वार्थी पर्यावरण की उपेक्षा करना छोड़ दें, पर्यावरण संरक्षण व संतुलन के लिए भी अपना समर्पण रचनात्मक तरीकों से करें, तो धरती फिर से संवारी जा सकती है प्राणियों व वनस्पति के लिए सदियों तक ।
*** सपने की बात है, इसलिए मानव से पर्यावरण प्रकृति प्रेमी जिन्न ने ज्यादा मांग लिया, सपने में सब चलता है न ! ****
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2015 at 1:46pm
मेरा यह प्रयास सफल हुआ आपकी उपस्थिति व प्रशंसा पाकर। तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी। इसका मैंने लघुकथा लघ लघुकथा रूप भी तैयार कर लिया है।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2015 at 1:43pm
बिलकुल सत्य कहा है आपने आदरणीय Dr. Viajai Shanker जी । इस गंभीर मसले पर जन जागरण के साथ ही शासन प्रशासन को सख़्त क़दम उठाने ही चाहिए। मेरी रचना पर उपस्थित हो कर सराहना के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 6, 2015 at 1:18pm
बधाई , आदरणीय शेख सहजाद उस्मानी जी , स्वप्न के नाम पर बातें तो सही हैं , दिल्ली पर्यावरण / प्रदूषण के कारण जिस समस्या से जूझ रही है , अभी भी मजाक लग रहा है , कितनी ग्रीन - बेल्ट काट कर इमारतें बन गयी , शायद कोई हिसाब नहीं होगा। अब चलने - फिरने पे रोक लग रही है , जमीन रहने लायक रह जाए या नहीं , कमाई भरपूर होनी चाहिए। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:26pm

आदरणीय शेख उस्मानी भाई , आपकी बेहतरीन कल्पना और इस पर्यावरण की समस्या के लिये संदेश देती कथा के लिये आपको दिली मुबारक बाद ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 5, 2015 at 10:31am
धन्य हुआ आपकी उपस्थिति व प्रोत्साहक टिप्पणी पाकर ।तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
Comment by मोहन बेगोवाल on December 4, 2015 at 10:54pm

 आदरणीय उस्मानी जी, इस सार्थिक लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई कबूल  करें 

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