For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कह मुकरियाँ 26 से 35 (कल्पना रामानी)

26)

अपने मन का भेद छिपाए।

मेरे मन में सेंध लगाए।

रखता मुझ पर नज़र निरंतर।

क्या सखी साजन?

ना सखि, ईश्वर!

27)

हरजाई दिल तोड़ गया है।

मुझे बे खता छोड़ गया है।

नहीं भूल पाता उसको मन।

क्या सखि साजन?

ना सखि बचपन!

28)

जब से उससे प्रीत लगाई।

थामे रहता सदा कलाई।

क्षण भर ढीला करे न बंधन।

क्या सखि साजन?

ना सखि, कंगन!

29)

जब भी देना चाहूँ प्यार।

बेदर्दी कर देता वार।

बार-बार हो जाती भूल,

क्या सखि साजन?

ना सखि शूल!

30)

बागों में जब मुझसे मिलता।

मन मयूर बन सखी! मचलता।

देख-देख कर उसका शबाब!

क्या सखि साजन?

ना री गुलाब!

31)

जब बहार बागों में आए।

कहीं दूर से मुझे बुलाए।

मिलने को मन होता बेकल।

क्या सखि साजन?

ना सखि कोयल!

32)

बाहुपाश फैला सुविशाल।  

मुझे जकड़ ले करे धमाल।

पोर-पोर हो जाता कूल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, पूल!

33)

चलते-चलते वो इतराए।

तान छेड़कर सुर में गाए।

झूम उठे सुन-सुन मन पागल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, पायल!

34)

संग चले वो सुख दुख बाँटे।

पथ की हर बाधा को छाँटे।

चूमे, चाटे, काटे पल-पल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, चप्पल!

35)

सुंदरता की वो है खान।

गुण इतने, क्या करूँ बखान।

नज़र मिले गम जाती भूल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, फूल!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:37pm

आदरणीय आपका एक शब्द ही  मेरे लिए अनेक संभावनाओं का स्रोत है। आपकी ही प्रेरणा से यह सब सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है। आपका हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 2:49am

एक शब्द .. अद्भुत !

सादर बधाइयाँ..

Comment by कल्पना रामानी on March 10, 2014 at 10:55pm

आदरणीया प्राची जी, पोस्ट पर आने और रचना की सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 10, 2014 at 10:19am

सुन्दर कहमुकरियाँ  हुई हैं आदरणीया कल्पना जी 

कंगन और बचपन वाली ख़ास पसंद आयीं 

सादर बधाई स्वीकारें 

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:15pm

आदरणीया अनीता जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:15pm

प्रिय बृजेश बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:14pm

आदरणीय नीरज जी, हृदय से आभार

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:13pm

आदरणीय अखिलेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:12pm

आदरणीय अजय जी, हार्दिक आभार

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:11pm

आदरणीय अनिल जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service