For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद

2122 2122 2122 212

हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद

आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद

फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली

मसअले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद

ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गईं दस्तार सब कालीन कह देने के बाद

फूल, तितली, चाँद-तारे, रंग से महरूम हैं

आपकी रानाई को रंगीन कह देने के बाद

ख़ूब उगला ज़ह्र यारों ने तअल्लुक़ तोड़ कर

साँप का बिल है मेरी अस्तीन कह देने के बाद

~ बलराम धाकड़

मौलिक/अप्रकाशित।

Views: 960

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on October 25, 2018 at 9:10am

आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन एवं धन्यवाद। आप जिस तवज्जो और जितना वक़्त देकर ग़ज़लों की तक़तीअ और मीमांसा करते हैं वह हम जैसे शागिर्दों के लिए किसी प्रकाश स्तम्भ से कम नहीं है। आपके कहे मुताबिक सुधार कर लिया जाएगा। पुनः बहुत आभार।

सादर।

Comment by Samar kabeer on October 24, 2018 at 11:16pm

//

चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद ।

सर, इस मतले में कहने का प्रयास यह किया गया है कि, आपकी हर बात, हर एक प्रार्थना पर राज़ी हो जाने, उसमें शामिल हो जाने और उसपर आमीन कह देने की प्रवृत्ति है और इसी प्रवृत्ति के चलते चींटियों के जैसे क्षुद्र जीव भी बाज़ की तरह उड़ने लगे हैं। यह मतला, दरअसल शरणागतवत्सल के नाम पर अपने हरेक पात्र या अपात्र प्यादे के सर्वविध संरक्षण के प्रति व्यंग्यस्वरूप लिखा गया है

//

आपके तर्क ठीक हैं,मतला गवारा किया जा सकता है ।

//

यक़ीनन खून का ज़ायका नमकीन होता है लेकिन बहुतों ने इसे शायद ही कभी चख कर देखा हो। प्राकृतिक संसाधनों जिनपर प्रत्येक मनुष्य का जन्मजात अधिकार है उन्हें तवज़्ज़ो देकर और उनका प्रचार प्रसार करके  उनका दाम भी बढ़ाया जा सकता है जो आमजन के हित में नहीं कहा जा सकता।//

चलिये ठीक है ।

//

ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का,

बिछ गईं दस्तार भी कालीन कह देने के बाद।

ऐसा कर लें तो क्या उचित रहेगा?//

सानी मिसरे में 'भी' की जगह "सब" कर लें ।

'आस्तीन' का कोई विकल्प नहीं,कुछ और सोचें ।

 

Comment by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 4:49pm


आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई का बहुत बहुत शुक्रिया। 

हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद ।

सर, इस मतले में कहने का प्रयास यह किया गया है कि, आपकी हर बात, हर एक प्रार्थना पर राज़ी हो जाने, उसमें शामिल हो जाने और उसपर आमीन कह देने की प्रवृत्ति है और इसी प्रवृत्ति के चलते चींटियों के जैसे क्षुद्र जीव भी बाज़ की तरह उड़ने लगे हैं। यह मतला, दरअसल शरणागतवत्सल के नाम पर अपने हरेक पात्र या अपात्र प्यादे के सर्वविध संरक्षण के प्रति व्यंग्यस्वरूप लिखा गया है लेकिन शायद अपने कथ्य की प्रभावी अभिव्यक्ति में असफल रहा। जिसका मुझे अफ़सोस है।

 

आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद

यक़ीनन खून का ज़ायका नमकीन होता है लेकिन बहुतों ने इसे शायद ही कभी चख कर देखा हो। प्राकृतिक संसाधनों जिनपर प्रत्येक मनुष्य का जन्मजात अधिकार है उन्हें तवज़्ज़ो देकर और उनका प्रचार प्रसार करके  उनका दाम भी बढ़ाया जा सकता है जो आमजन के हित में नहीं कहा जा सकता।

 

मोजज़ा ये भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गए दस्तार भी कालीन कह देने के बाद

इस शेर को,

ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का,

बिछ गईं दस्तार भी कालीन कह देने के बाद।

ऐसा कर लें तो क्या उचित रहेगा?

 

बाकी शेर अपने ठीक कर दिए हैं। परंतु अस्तीन का कोई अन्य विकल्प समझ नहीं आया। कृपया इस विषय में भी मार्गदर्शन देने का कष्ट करें। 

मुआमला शब्द क्या बह्र के मुताबिक़ ठीक होगा, या इसके स्थान पर अन्य विकल्प तलाशना होगा।

आपकी समझाइश और सुझाव हमेशा ही बेशकीमती और इसीलिये शिरोधार्य होते हैं। ग़ज़ल को और समय देकर इस्लाह के मुताबिक सुधार करने का प्रयास करूँगा, सर।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 4:28pm

आ० नीलेश जी, हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। यक़ीनन अस्तीन शब्द उचित नहीं प्रतीत होता किन्तु अन्य कोई शब्द के अभाव में फ़िलहाल इस्तेमाल कर लिया गया है। आपके विचार से कोई अन्य काफ़िया इस्तेमाल किया जा सके तो कृपया उचित मार्गदर्शन का कष्ट करें।

सादर।

Comment by Samar kabeer on October 24, 2018 at 3:30pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,लेकिन ग़ज़ल अभी कुछ समय और चाहती है ।

हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं', शाहीन कह देने के बाद--मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी मिसरे में क्या कहना चाहते हैं,'शाहीन'का अर्थ है, सफेद रंग का शिकारी परिन्दा, आला क़िस्म का बुलन्द परवाज़ बाज़,और ' चींटियाँ उड़ने लगीं' से यहाँ क्या तातपर्य है आपका,कृपया बताने का कष्ट करें ।

आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद--ख़ून का ज़ायक़ा तो नमकीन ही होता है,फिर 'नमकीन' कह देने से दाम के दुगना होने की क्या तुक है, मेरे नज़दीक शैर का भाव स्पष्ट नहीं ।

फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मामले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद--इस शैर के सानी मिसरे में 'मामला' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है,"मुआमला" देखियेगा ।

मोजज़ ये भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गए दस्तार भी कालीन कह देने के बाद--इस शैर के ऊला मिसरे में ' मोजज़' शब्द को शायद आप "मौजिज़ा" लिखना चाहते थे,लेकिन ये शब्द यहाँ मुनासिब नहीं इसकी जगह 'करिश्मा' शब्द ठीक होता:-

'ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का'

और इस शैर के सानी मिसरे में "दस्तार" शब्द स्त्रीलिंग है, देखियेगा ।

फूल, तितली, चाँद-तारे, रंग से महरूम हैं

आपकी रानाई को रंगीन कह देने के बाद--ये शैर ठीक है ।

ख़ूब यारों ने ज़हर उगला, तअल्लुक़ तोड़ कर

साँप का बिल है मेरी अस्तीन कह देने के बाद--इस शैर के ऊला में सहीह शब्द है "ज़्ह्र" जिसका वज़्न 21 है, इस लिहाज़ से मिसरा यूँ होना चाहिए:-

'ख़ूब उगला ज़ह्र यारो ने तअल्लुक़ तोड़ कर'

इस शैर के सानी मिसरे में 'अस्तीन' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "आस्तीन" देखियेगा ।

बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें,बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2018 at 1:44pm

आ. बलराम जी..
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है.. ढेरों बधाईयाँ ..
लेकिन देखिएगा कि आस्तीन को अस्तीन पढ़ना दुरुस्त है क्या?
सादर 

Comment by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 12:36pm

हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 12:35pm

धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2018 at 12:02pm

आ. भाई बलराम जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकरें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 24, 2018 at 10:47am

हार्दिक बधाई आदरणीय बलराम धाकड़ जी। बेहतरीन गज़ल।

फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मामले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
3 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service