हमने एक दुनिया उजाड़ दी
शेरों और नील गायों की
ख़रीद ली उनकी खाल
बारह सींगों के
सींगों से कर रहे हैं
घर की दीवारों का श्रृंगार
अब आदमखोर
शेरों को नहीं
इंसानों को कहना होगा बेहतर
हिंसक हरकतें सारी
चुरा ली है
शेरों से इंसानों ने
कितने ही लक्षण आ गए हैं
पशुओं वाले इंसानों में
ऐसे में लाजमी है
जंगलों का ख़त्म होना
शेरों का ख़त्म होना ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
कविता की सराहना और अनुमोदन का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आदाब , सीख देती ज़बरदस्त कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
पर्यावरणीय चेतना और मर्म को निरपेक्ष प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। सच है आज इंसान आदमखोर हो गया है। आपकी पँक्तियाँ
अब आदमखोर
शेरों को नहीं
इंसानों को कहना होगा बेहतर
बरबस ध्यान आकृष्ट करती हैं। बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर। सादर
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