For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खड़े तनकर तुम्हारे सामने दीवार भी हम थे (ग़ज़ल 'राज')

बहा तुमको लिए जाती थी जो वो  धार भी हम थे

हमी साहिल तुम्हारी नाव के  पतवार भी हम थे

निगल जाता सरापा तुमको वो तूफ़ान था जालिम

खड़े तनकर  उसी के  सामने दीवार भी हम थे

मुक़द्दस फूल थे मेरे चमन के इक महकते गर 

छुपे बैठे हिफाज़त को तुम्हारी ख़ार भी हम थे

किया घायल तुम्हारा दिल अगर इल्जाम भी होता 

तुम्हारा  दर्द पीने  को वहाँ गमख्वार भी हम थे

रिवाजों की बनी जंजीर ने गर तुमको बांधा था

वहाँ मौजूद उसको काटने तलवार भी हम थे

अगर ये  पूछते उससे  तुम्हारा  दिल भी कह देता

चुराया आँख का काजल भले शृंगार भी हम थे

ज़माने की बिछाई धूप में तपना पड़ा तुमको

मुकम्मल छाँव देने को तुम्हें अश्जार भी हम थे

कभी अपनी मुहब्बत को अगर गिनते गुनाहों में

मुक़र्रर  हर सज़ा के वास्ते हक़दार भी हम थे

अगर तुम दिल्लगी से खेलते हम से तो क्या होता 

तुम्हारी जीत भी हम थे तुम्हारी हार भी हम थे

--------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 989

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 11, 2017 at 1:03pm

जी आद० समर भाई जी नाव के पतवार ही किया है मूल पोस्ट में इधर भी क्र लूँगी आप इजाजत की क्या बात कर रहें हैं भाई जी ये  बात कहके शर्मिंदा मत कीजिये आपकी समीक्षा का तो इन्तजार रहता है पोस्ट पर .आपका स्वागत है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 11, 2017 at 12:59pm

आद० नरेंद्र सिंह जी ,ग़ज़ल आपको अच्छी लगी बहुत बहुत आभारी हूँ 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 11, 2017 at 10:46am
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। अशआर दर अशआर दाद कुबूल फरमाएं। ग़ज़ल का अंत इन शब्दों से बहुत सुंदर हुआ है।

अगर तुम खेलते हम से समझकर दिल्लगी दिल की
तुम्हारी जीत भी हम थे तुम्हारी हार भी हम थे
Comment by Samar kabeer on April 10, 2017 at 7:47pm
'नाव का पतवार' नहीं "नाव के पतवार"कीजिये न ?पतवार बहुवचन है, आपकी ग़ज़ल के बाक़ी अशआर पर विस्तृत टिप्पणी कल करूँगा,अगर आपकी इजाज़त हो ?
Comment by narendrasinh chauhan on April 10, 2017 at 7:20pm

सुन्दर रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 10, 2017 at 7:12pm

आद० समर भाई जी ,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी इसका दिल से शुक्रिया | आपने सही ध्यान दिलाया पतवार वाले मिसरे में --नाव के पतवार कर दूंगी ..नाव का पतवार जम नहीं रहा | दूसरे  भाई जी मैं ये तो नहीं कहूँगी की ये ग़ज़ल जल्दी बाजी में कही है दरअसल एक आयोजन में रदीफ़ दिया गया था बहुत दिमाग पच्ची करनी पड़ी --भी हम थे --इस रदीफ़ पर चूंकि एक मुसलसल ग़ज़ल कही है तो इसमें तुमको या तुम्हे आना लाजमी था फिर भी कहीं कुछ हो सका तो अवश्य दुरुस्त करूंगी | आपका बहुत बहुत शुक्रिया इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहें सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 10, 2017 at 7:07pm

आद० मोहम्मद आरिफ जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 10, 2017 at 7:06pm

आद० लक्ष्मण धामी भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत बहुत आभार आपका |

Comment by Samar kabeer on April 10, 2017 at 6:05pm
बहाना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल तो अच्छी है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के सानी मिसरे में 'पतवार'शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।
ग़ज़ल के हर शैर में 'तुम','तुम्हारी',तुमको'शब्द आये हैं जो ग़ज़ल को कमज़ोर कर रहे हैं,बहुत से मिसरे चुस्त नहीं हैं,ऐसा लगता है ये ग़ज़ल आपने बहुत जल्दबाज़ी में कही है ?
Comment by Mohammed Arif on April 10, 2017 at 12:40pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service