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सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on May 29, 2011 at 11:18am
निकल ज़ज्बात दिल के ढल गये है आज लफ्जों में.
कहेंगे बात हम सच्ची, ये मानो या न मानो तुम..
Comment by Abhinav Arun on May 29, 2011 at 10:42am
वाह बागी भाई क्या बात कही आप, ने बिलकुल दिल की गहराए से निकले जज़्बात !! बधाई !!!!
Comment by Anand kumar Ojha on May 28, 2011 at 12:48pm
bahut sundar jee

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2011 at 12:28pm
वीरेन्द्र भाई, ग़ज़ल की सराहना हेतु आभार |
Comment by Veerendra Jain on May 28, 2011 at 12:25pm
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम...
 
bahut hi sunder ...Ganesh bhaiya..bahut bahut badhai aapko is shandar gazal ke liye...
Comment by Pallav Pancholi on May 28, 2011 at 1:38am
sundar rachna

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 11:11pm
सराहना हेतु धन्यवाद इस्मत जैदी जी |
Comment by ismat zaidi on May 27, 2011 at 10:43pm

सुंदर प्रस्तुति !!!!

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 6:08pm
टिप्पणी हेतु आपका धन्यवाद, मीठे एहसास होने पर उसके बारे में जरुर लिखूंगा @ रजनी खेतान

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 6:05pm
Dhanyavad@Amrendra ku.

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