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करीबी रिश्तेदार (लघुकथा)

दीनदयाल की विधवा की दस लाख की लॉटरी खुल गयी!घर रिश्तेदारों से भर गया I छोटा दो कमरों का मकान! मॉ बेटी दो प्राणी, दौनों परेशान!

"अम्मा, ये  लोग कौन हैं,और कब तक रहेंगे"!

"बेटी,ऐसे नहीं बोलते, मेहमान हैं,बधाई देने आये है"!

"मैने तो कभी नहीं देखा इनको"!

"ये  तेरे बापू के करीबी रिश्तेदार हैं"!

"अम्मा,दो महिने पहले जब बापू शांत हुए थे, तब तो कोई नहीं आया था"!

  मंदिर  में भज़न बज रहा था,"सुख के सब साथी, दुख में न कोय"!

.

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 11:22am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, दुःख में भागने वाले रिश्तेदार सुख में कुकुरमुत्ते की तरह उग आते है. बढ़िया लघुकथा पर हार्दिक बधाई 

Comment by TEJ VEER SINGH on August 19, 2015 at 11:21am

हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी, राजेश कुमारी जी, लघुकथा अवलोकन एवम  सराहना करने हेतु पुनः आभार!


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Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 9:00pm

सही कहा सुख के सब साथी ..जेब में अच्छा पैसा आ जाए तो नए नए रिश्तेदार भी पैदा हो जाते हैं |लघु कथा अपना सन्देश देने में सक्षम है बहुत बहुत बधाई आ० तेजवीर सिंह जी  

Comment by Omprakash Kshatriya on August 18, 2015 at 9:00pm
आ तेज वीर सिंह जी बहुत सही बात कही आप ने-सुख के सब ....। बधाई इस सुन्दर लघुकथा के लिए ।

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