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माँ परियों की रानी है -- डॉo विजय शंकर

मातृ-दिवस पर

माँ
जिसके बिन जन्म नहीं
सुरक्षा है, सुकून है ,
शान्ति हैं ,
ज्ञान है , संस्कृति है ,
एक पूर्ण परिवेश है ,
अबोथ के लिए ,
अपना विश्वकोष है ,
ईश्वर का वरदान है।
नैसर्गिक अधिकार है ,
अमूल्य है, मूल्यरहित
उपहार है.

स्वर्ग में ,
अप्सराएं प्रतीक्षा करतीं हैं ,
स्वर्ग जाने पर मिलती हैं ,
किसने देखा है,
किसने जाना है ?

धरती पर आने पर
सबसे पहले माँ मिलती है,
माँ प्रतीक्षा करती मिलती है ,
महीनों माँ ,
दिन गिनती है,
पल गिनती है,
फिर पल पल गिनती है ,
हर पल पुलकित होती है,
वह किस अप्सरा से कम है ,
वह तो परियों की रानी है ,
उसी से तो परियों की कहानी है ,
ये सबने देखा है,
ये सबने जाना है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 565

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2015 at 2:03am
प्रिय जितेंद्र जी, रचना की स्वीकृति एवं प्रशस्ति के लिए आभार. आपको मातृ- दिवस की बधाई । सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2015 at 2:02am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, रचना की स्वीकृति एवं प्रशस्ति के लिए आभार. आपको मातृ- दिवस की बधाई । सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:42am

माँ की गरिमा में बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति आदरणीय डा.विजय जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 11, 2015 at 9:29pm

आदरणीय विजय भाई , मातृत्व को बहुत सुन्दर  परिभाषित किया है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें रचना के लिये ।

कृपया ध्यान दे...

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