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मौसा, मौसी, ताऊ, फूफा
दुल्हे के सब साथी
बज रहे हैं गाजे बाजे
नाच रहे बाराती.

मेट्रो सी चमक रही
दिल्ली वाली भाभी
चक्करघिन्नी सी घूमे अम्मा
टांग कमर में चाभी
घुटनों का दर्द छुपाये
देख सभी को मुस्काती

नई सूट पहन कर भैया,
नाश्ते का पैकेट बाँट रहा
अपने लिए भी कोई
कटरीना, करीना छांट रहा
लहंगा चोली पहन के छोटी
घूमती है इतराती

जनक जीवन की मुश्किल बेला
विदा हो रही सीता
भीतर में कुछ टूट रहा
भर गयी है रिक्तता
पत्थर सी आँखों में
जल बुँदे बहती आती ..

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 27, 2015 at 6:05pm
चित्रांकन अच्छा है , बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 27, 2015 at 3:15pm
सुन्दर चित्र उकेरा है आदरणीय नीरज जी
इस प्रस्तुति पर बधाई।
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 2:22pm
वाह
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 27, 2015 at 11:52am

बहुत खूब, आदरणीय नीरज जी. सभी के जीवन में होने वाले एक दिवसीय उत्सव का सुंदर चित्रण किया है आपने. बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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